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ज्ञानयोग

हम जिन्हें पञ्चभूत कहते है उनका कोई अस्तित्व नहीं है, किन्तु दूसरा मत सिद्ध नहीं किया जा सकता।

शरीर के भीतर यह जो शक्ति का विकास देखा जाता है यह क्या है? हम सभी यह बात सरलता से समझ सकते है कि यह शक्ति जो कुछ भी हो, यही शक्ति जड़ परमाणुओ को लेकर उनसे एक विशेष आकृति―मनुष्य देह―को तैयार करती है। और कोई आकर तुम्हारे मेरे शरीर को नहीं बनाता। दूसरा कोई मेरे लिये खा रहा है ऐसा मैने कभी नहीं देखा। मुझे ही इस भोजन का सार शरीर में लेकर उससे रक्त, मास, अस्थि आदि का गठन करना होता है। यह अद्भुत शक्ति क्या है? भूत भविष्य के सम्बन्ध में कोई भी सिद्धान्त मनुष्यो को भयावह प्रतीत होता है, बहुत लोगों को तो यह केवल एक अमानुषिक बात मालूम होती है। अतएव वर्तमान में क्या होता है, हम यही समझने की चेष्टा करेगे। हम वर्तमान विषय को ही लेगे। वह शक्ति क्या है जो इस समय हमारे भीतर बैठी काम कर रही है? हम देख चुके है कि सभी प्राचीन शास्त्रो में इस शक्ति को लोगो ने इसी शरीर के समान शरीर से सम्पन्न एक ज्योतिर्मय पदार्थ माना है; उनका विश्वास था कि इस शरीर के चले जाने पर भी वह शरीर रहेगा। क्रमश: हम देखते है कि केवल ज्योतिर्मय देह कहने से सन्तोष नहीं होता―एक और भी ऊँचा भाव लोगों के मन पर अधिकार करता दिखाई देता है। वह यह है कि किसी प्रकार का शरीर शक्ति का स्थान नहीं ले सकता। जिस किसी वस्तु की आकृति है वह वस्तु केवल बहुत से परमाणुओं का एक समूह है, अतएव उसको चलाने के लिये और कुछ भी चाहिये। यदि इस शरीर