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मनुष्य का यथार्थ स्वरूप


उठती और अन्तर्हित होती रहती हैं। किन्तु वे एकदम अन्तर्हित भी नही होतीं। वे क्रमशः सूक्ष्मतर होती जाती है, परन्तु वर्तमान रहती ही है। प्रयोजन होने पर फिर उठती हैं। जिन चिन्ताओ ने सूक्ष्मतर रूप धारण कर लिया है उन्हीं में से कुछ एक को फिर तरड्गाकार मे लाने को ही स्मृति कहते है। इसी प्रकार हमने जो कुछ ही चिन्ता की है, जो कुछ कार्य हमने किये है सभी कुछ मन के अन्दर अवस्थित है। ये सब सूक्ष्म भाव से ही स्थित रहते है और मनुष्य के मर जाने पर भी ये संस्कार उसके मन मे रहते है—फिर वे सूक्ष्म शरीर के ऊपर कार्य करते रहते है। आत्मा ये ही सब संस्कार एवं सूक्ष्म शरीर रूपी वस्त्र धारण करके चला जाता है और यह विभिन्न संस्कार रूप विभिन्न शक्तियो का समवेत फल ही आत्मा की गति को नियमित करता है। उनके मत से आत्मा की तीन प्रकार की गति होती है।

जो अत्यत धार्मिक हैं उनकी मृत्यु के बाद वे सूर्यरश्मियों का अनुसरण करते है; सूर्यरश्मियो का अनुसरण करके वे सूर्यलोक मे जाते है; वहाॅ से वे चन्द्रलोक और चन्द्रलोक से विद्युल्लोक मे उपस्थित होते है; वहाॅ एक मुक्त आत्मा से उनका साक्षात्कार होता हैं; वे इन जीवात्माओं को सर्वोच्च ब्रह्मलोक मे ले जाते है। यहाॅ उन्हे सर्वज्ञता और सर्वशक्तिमत्ता प्राप्त होती है; उनकी शक्ति और ज्ञान प्राय: ईश्वर के समान हो जाता है, और द्वैतवादियों के मत मे वे अनन्त काल तक वहाॅ वास करते है, अथवा अद्वैतवादियो के अनुसार कल्पान्त मे ब्रह्म के साथ एकत्व लाभ करते है। जो लोग सकाम भाव से सत्कार्य करते हैं वे मृत्यु के बाद चन्द्रलोक मे जाते है, वहाँ नाना