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ज्ञानयोग


सदा के लिये चला गया है। तो क्या इन लोगों की, सत्य ज्ञान की प्राप्ति होने के बाद तुरन्त ही मृत्यु हो जाती है? हम जितनी जल्दी समझते हैं उतनी जल्दी नहीं। मान लो, दो पहिये जो एक लकड़ी से जुड़े हुए है साथ साथ चल रहे है। अब यदि मै एक पहिये को पकड़ कर बीच की लकड़ी को काट दूॅ तो जिस पहिये को मैंने पकड़ रखा है वह तो रुक जायगा; किन्तु दूसरा पहिया, जिसमे पहले का वेग अभी है, कुछ दूर और चल कर गिर पड़ेगा। पूर्ण शुद्ध स्वरूप आत्मा मानो एक पहिया है और शरीर मन आदि रूप भ्रान्ति दूसरा पहिया; और कर्म रूपी काष्ठ दण्ड द्वारा ये दोनो जुड़े हुए है। ज्ञान ही मानो कुठार है जो इस संयोग-दण्ड को काट देता है। जब आत्मा रूपी पहिया रुक जायगा, तब आत्मा, आ रहा है जा रहा है अथवा उसका जन्म और मृत्यु हो रहा है, इस प्रकार के सभी अज्ञान के भावो का त्याग कर देगा,और प्रकृति के साथ उसका सयुक्त भाव एवं अभाव, वासना--सब चला जायगा; तब आत्मा देख सकेगा कि वह पूर्ण है, वासना रहित है। किन्तु शरीर और मन के पहिये मे अभी प्राक्तन कर्मों का वेग रहेगा। इसलिये जब तक यह कर्मों का वेग पूरी तरह समाप्त नहीं होगा तब तक शरीर और मन रहेगे ही; यह वेग समाप्त हो जाने पर इनका भी पतन हो जायगा, तब आत्मा मुक्त होगा। तब फिर स्वर्गलोक जाना स्वर्ग से पृथिवी पर लौटना यहाँ तक कि ब्रह्मलोक जाना तक स्थागित हो जायगा; कारण वह (आत्मा) कहाॅ से आयेगा, कहाॅ जायेगा? जिन व्यक्तियो ने इस जीवन मे ही इस अवस्था को प्राप्त किया है, जिन्हे अन्ततः एक मिनट के लिये भी यह संसार का दृश्य बदल कर सत्य का आभास