घंटा लगा। मद्रास में क़दम रखते ही उसे जिन समस्याओं का सामना करना पड़ा, पग-पग पर उन्हीं से उलझना पड़ा। उसके हर प्रश्न का उत्तर अंग्रेज़ी ही में मिला। तमिळ में उत्तर देने वाले तो रिक्शेवाले और टैक्सी ड्राइवर ही थे। उनकी तमिळ भी उसकी समझ में जल्दी नहीं आयी। मदुरै में बड़े-छोटे लड़कों के साथ भी आदरसूचक संबोधन ही सुनने को मिलता था। मद्रास में तो बड़े-बूढ़ों के साथ भी 'तू तू, मैं मैं' ही चलती थी। मुत्तकुमरन् अंग्रेज़ी जानता ही नहीं था। और मद्रास की तमिळ तो विभिन्न भाषाओं की मिली-जुली खिचड़ी थी।
बारिश के कारण म्युज़ियम, पुस्तकालय या आर्ट गैलरी में विशेष भीड़ नहीं थी। सब कुछ देखकर जब वह बाहर निकला तो फिर से पानी बरसना शुरू हो गया था। चूँकि टेलिफ़ोन डाइरेक्टरी पर गोपाल का पता नहीं था, होटल के रिसेप्शनिस्ट से पूछ-ताछ कर जो पता उसे मिला था, उसे ही एक छोटे-से कागज़ पर लिखकर अपनी जेब में रख लिया था। वह पुर्जा भी पानी में ज़रा भीग गया था। कुछ क्षण तक सोचता रहा कि इस बारिश में गोपाल के घर कैसे जाये? पास के व्यक्ति से समय पूछा तो उन्होंने बताया कि पौने चार बजे हैं। साढ़े चार बजे गोपाल के घर पर पहुँचना था। उसे लगा कि इसी घड़ी चल देना अच्छा होगा। यदि बस में जाये तो जगह के बारे में पूछकर उतरने में दिक्क़त होगी। हो सकता है, बस स्टैण्ड से गोपाल के घर तक पानी में भीगते हुए चलना पड़े। उसे इस बात का तो पता नहीं कि गोपाल का घर बस स्टैण्ड के निकट होगा या दूर।
काफ़ी सोच-विचार कर, वह इस नतीजे पर पहुँचा कि टैक्सी करके जाना ही अच्छा है। साथ ही, अपनी माली हालत को मद्दे नज़र रखते हुए उसे यह चिन्ता भी सवार हुई कि टैक्सी में जाना कहाँ तक उचित है? अगले क्षण उसे एक दूसरी चिन्ता भी सताने लगी कि अगर टैक्सी में नहीं पहुँच पाया तो वह आज गोपाल से मिल नहीं पाएगा। फिर तो अनेक असुविधाओं का सामना करना पड़ेगा। अतः चाहे कुछ भी हो, आज ही गोपाल से मिल लेना होगा।
इस निष्कर्ष पर पहुँचकर, वह टैक्सी पकड़ने के लिए पानी में भीगता हुआ पेन्थियन रोड के प्लेटफार्म तक आया। बारिश की वजह से खाली टैक्सियाँ दिखायी ही नहीं दे रही थीं। दस मिनट की प्रतीक्षा के बाद, एक टैक्सी मिली। उसमें सवार होते ही 'मीटर' लगाते हुए टैक्सी ड्राइवर ने पूछा, "किधर?"
मुत्तुकुमरन् ने जेब का कागज़ निकालकर देखा और बोला, "गोपाल, बोग रोड, मांबळम।"
टैक्सी की रफ्तार तेज़ करते हुए ड्राइवर ने उत्सुकता से पूछा, "कौन-से गोपाल? सिने स्टार? क्या आप उन्हें जानते हैं?"
'हांँ' में जवाब देकर वह फिर कहीं रुक नहीं पाया। बचपन में ही वाय्स कंपनी में सम्मिलित होने से लेकर गोपाल के मद्रास में आकर सिने-अभिनेता बनने