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100/यह गली बिकाऊ नहीं
 


"आप हैं हमारे नये नाटक के लेखक ! बड़े भारी बिद्वान और कवि।" माधवी उसका उन्हें परिचय देने लगी तो मुत्तुकुमरन् ने उसके कानों में फुसफुसाया, "बस, बस! अपना काम देखो!"

ठंडे 'रोज़ मिल्क' के दो गिलास उनके सामने रखे गये।

"इन सबकी क्या ज़रूरत है ?" माधवी ने कहा!"

"आप जैसे ग्राहक बार-बार थोड़े आते हैं !" दुकान के मालिक ने हाथ ऐसे जोड़े कि उँगलियों में फंसी अंगूठियाँ चमक उठीं ।

रेशमी धोती, रेशमी कुरता, पान-सुपारी की लाली से रंगी मुस्कान, मुलायम रेशम को मात करनेवाली चिकनी-चुपड़ी बातें और बात-बात में चमत्कृत करने की कोशिश।

रंग, चमक, किनारी, वनावट आदि में एक से बढ़कर एक बढ़िया साड़ियाँ उनके सामने बिछायी गयीं।

"यह आपको पसंद है?" सुआपंखी रंग की साड़ी निकालकर दिखाते हुए माधवी ने पूछा।

"शुक-सा यूरिकाओं को अपने रंग से मोह हो तो आश्चर्य की क्या बात है ?" मुत्तुकुमरन् होंठों में मुस्कान फेरते हुए बोला।

माधवी साड़ियों से नजर उठाकर मुत्तुकुमरन् को देखते हुए बोली, "हास- परिहास छोड़िये न?"

"साड़ी के बारे में मर्द बेचारा क्या जाने !"

घंटे तक साड़ियों को उलट-पलटकर देखने के बाद माधवी ने दर्जन भर साड़ियाँ चुनीं।

"आप कोई रेशमी धोती लीजिये ना?"

"नहीं !"

"जरीवाली. धोती आए' पर खूब फबेगी !" दूकानदार ने कहा । पर मुत्तुकुमरन ने इनकार कर दिया।

उन्हें लौटते हुए दोपहर के दो बज गये थे । जब वे बंगले पर पहुँचे; तब गोपाल के सेक्रेटरी 'पासपोर्ट' के क्षेत्रीय कार्यालय से पासपोर्ट ला चुके थे। थोड़ी देर में पासपोर्ट सम्बन्धित व्यक्तियों के हाथ सौंपे गये । जहाज पर पहले जानेवाले अपनी यात्रा की तैयारी में लगे थे। सीन, सेट और नाटक के अन्य सामान आदि "जहाज से भेजे जाने के योग्य ढंग से बांधे गये।

कलाकार संघ ने विदाई समारोह का आयोजन भी किया था। गोपाल की नाटक मंडली की मलेशिया यांना के बारे में भड़कीला विज्ञापन निकाला गया। उस . समारोह में जहाज से जानेवाले कलाकारों के साथ गोपाल, माधवी और मुत्तु- कुमरन् भी सम्मिलित हुए थे ! संघ के अध्यक्ष ने गोपाल की मंडली की सांस्कृतिक