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यह गली बिकाऊ नहीं/103
 


बँगले' में आने-जानेवालों का तांता लगा हुआ था। पोर्टिको और बगीचे में जगह न होने से अनेक छोटी-बड़ी कारें बोग रोड में ही खड़ी की गयी थीं।

'जिल जिल' और दूसरे पत्रकार फोटो खींचते अधा नहीं रहे थे। आने-जानेवालों में से किसी को भी गोपाल ने अपनी आँखों से बचने नहीं दिया और हाध मिलाकर विदा ली ! सिने-निर्माता, सह-कलाकार और मित्र-वृन्द बड़ी-बड़ी मालाएँ पहनाकर गोपाल को विदा कर रहे थे और फिर वापस जा रहे थे। पूरे हाल में फर्श पर गुलाब की पंखुरियाँ ऐसी बिखरी थीं, भानो खलिहान में धान की मणियाँ सुखायी गयी हों। एक कोने में गुलदस्तों का अंबार-सा लगा था।

पौने बारह बजे हवाई अड्डे के लिए वहाँ से रवाना हुए तो गोपाल की कार में कुछ फ़िल्म-निर्माता और सहयोगी कलाकार भी चढ़ गये थे। इसलिए मुत्तुकुमरन् और माधवी को एक अलग कार में अकेले चलता पड़ा।

मीनम्बाक्कम में भी कई लोग माला पहनाने आये थे। दर्शकों की अपार भीड़ थी। मुचकुमरन के लिए यह पहला हवाई सफर था। अतः हर बात में उसकी जिज्ञासा बढ़ रही थी।

बिदा देनेवालों की भीड़ गोपाल पर जैसे छायी हुई थी। उनमें से बहुतों को माधवी भी जानती थी! उनसे बात करने और विदा होने के लिए वह गोपाल के पास चली जाती तो वहाँ मुत्तुकुमरन् अकेला रह जाता । इसलिए वह मुत्तुकुमरन् के पास ही खड़ी रही। बीच-बीच में गोपाल उसका नाम लेकर पुकारता और कुछ कहता तो वह जाकर उत्तर देती और वापस आकर मुत्तुकुमरन के पास खड़ी हो जाती।

माधवी को यह अपना कर्तव्य-सा लगा कि वह इस तड़क-भड़क और चहल- पहल बाले माहौल में मुत्तुकुमरन् को अकेला और अनजाना-सा महसूस नहीं होने दे। क्योंकि वह उसकी मानसिकसा से परिचित थी। साथ ही, उसे इस बात की भी आशंका थी कि उसे हमेशा मुत्तुकुमरन के पास देखकर कहीं गोपाल बुरा न मान “जाये। पर उसने उसकी कोई परवाह नहीं की।

'कस्टम्स' की औपचारिकता पूरी करके जब वे विदेश जानेवाले यात्रियों की "लाउंज' में पहुँचे तो मुत्तुकुमरन ने माधवी को छेड़ा, "तुम तो नाटक की नायिका हो और गोपाल नायक । तुम दोनों का जाना जरूरी है। मेरी समझ में नहीं आता कि तुम दोनों के बीच तीसरे व्यक्ति की हैसियत से किस खुशी में सिंगापुर आ रहा हूँ ?"

माधवी ने एक-दो क्षण इसका कोई उत्तर नहीं दिया। हँसकर टाल गयी। कुछ क्षणों के बाद उसके कानों में मुंह ले जाकर बोली, “गोपाल नाटक के कथा- नायक हैं। पर कथानायिका के असली कथानायक तो आप ही हैं !"

यह सुनकर मुत्तुकुमरन के होंठ खिल उठे। उसी समय गोपाल उनके पास