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110/यह गली बिकाऊ नहीं
 

तो जरूर पता चल गया है कि अब तुम पहले के नाटक कंपनीवाले गोपाल नहीं ! अब्दुल्ला या ऐरा-गैर कोई तुम्हारी कद्र करे तो इसलिए करे कि तुम एक कला- कार हो। इसलिए नहीं कि तुम्हारे साथ चार-पाँच लड़कियाँ हैं, जो तुम्हारे इशारे पर चल सकती हैं। क्या तुम ऐसी ही कद्र की खोज में हो ? बड़े अफ़सोस की बात है।"

इस गहमा-गहमी के बीच, दोनों को इस बात का खयाल नहीं रहा कि हबाई जहाज कहाँ-कहाँ उतरा और फिर उड़ान भरता रहा ।

जंब हवाई जहाज क्वालालम्पुर के सुबाङ इन्टरनेशनल एयरपोर्ट पर उतरा तो अब्दुल्ला ने आकर कहा, "यहाँ कुछ लोग माला पहनाने आये होंगे। ज़रा आइए । लाउंज तक हो आयें।"

गोपाल गया। माधवी संकोचवश खड़ी रही। मुत्तुकुमरन् तो अपने आसन से उठा ही नहीं। वह माधवी से बोला, "मैं नहीं आता। मेरे लिए कोई माला नहीं लाया होगा । तुम हो आओ!"

"तो मैं भी नहीं जाती।"

अब्दुल्ला ने फिर हवाई जहाज़ के अन्दर आकर अनुरोध किया, "डोंट क्रिएट ए सीन हियर, प्लीज़ डू कम ।"

माधवी उनके पीछे चली। उसने भी तो सिर्फ माधवी को ही बुलाया था।

अब्दुल्ला ने मुत्तुकुमरन् की ओर तो आँखें उठाकर देखा तक नहीं। क्वालालम्पुर में आये हुए लोगों की मान-मर्यादा और गुलदस्ते स्वीकार कर गोपाल, अब्दुल्ला और माधवी-तीनों हवाई जहाज पर चढ़ आये। "अरे रे ! उस्ताद नीचे उतरकर नहीं आये क्या?" गोपाल ने ऐसी नकली हमदर्दी-सी जतायी, मानो मुत्तुकुमरन् के. हवाई जहाज़ के अंदर ही ठहर जाने की बात का उसे अभी- अभी पता चला हो । मुत्तुकुमरन ने उसका कोई उत्तर नहीं दिया।

हवाई जहाज फिर उड़ान भरने लगा तो पहले की तरह अब्दुल्ला और गोपाल अगली पंक्ति में बैठकर बातें करने चले गये। माधवी भी मुत्तुकुमरन के पास आकर, पहले जहाँ बैठी थी, वहीं बैठ गयी और रूमाल से मुंह ढक लिया, मानो बहुत थक गयी हो।

थोड़ी देर वे दोनों एक-दूसरे से कुछ नहीं बोले। अचानक किसी के सिसकने की आवाज़ आयी तो मुत्तुकुमरन ने आसपास की सीटों की ओर मुड़कर देखाः । आगे-पीछे की ही नहीं, अगल-बगल की सीटें भी खाली थीं। उसके मन में कुछ सन्देह हुआ तो उसने माधवी के चेहरे पर से रूमाल हटाने के लिए अपना हाथ बढ़ाया । माधवी ने वह हाथ रोक लिया। लेकिन फिर उसने जबरदस्ती रूमाल खींच लिया तो देखा कि माधवी आँसू बहाती हुई सिसक रही है।

"यह क्या कर रही हो ? यहाँ आकर जगहँसाई करने पर तुली हो?"