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112/यह गली बिकाऊ नहीं
 


जाने या न जाने की अनुमति मांग रही हो।

"हो आओ न ! माला के साथ आये सज्जनों को निराश न करो !" मुत्तुकुमरन् ने आदेश दिया।

माधवी अनिच्छा से उठकर गयी । मुत्तुकुमरन् ने काँच के झरोखे से बाहर की भीड़ को देखा। चार-पाँच मिनट में दोनों-माधवी और अब्दुल्ला जहाज पर लौट आये।

जहाज फिर उड़ने लगा। पलक झपकते-न-झपकते पिनांग आ गया। पिनांग के हवाई अड्डे में भी दर्शकों की भीड़ उमड़ी पड़ी थी। बड़े ठाठ-बाट से उनका स्वागत हुआ । माधवी और गोपाल ने सबको मुत्तुकुमरन् का परिचय दिया। अब्दुल्ला ने जैसे उसकी परवाह ही नहीं की। मुत्तुकुमरन ने भी अब्दुल्ला की परवाह कहाँ की ? फिर भी उसे इस बात का दुख अवश्य हो रहा था कि अब्दुल्ला अपने देश में आये हुए मेहमान कलाकारों का मेज़बान होकर भी उदासीनता वरत रहा है।

हवाई अड्डे से पिनांग के शहर में जाते हुए काफ़ी अँधेरा हो चला था। उस रात अब्दुल्ला ने 'पिनांग हिल' के अपने बंगले पर उन्हें ठहराने की व्यवस्था की थी। इसलिए हवाई अड्डे से निकली कारें सीधे पिनांग हिल जाने वाली रेल गाड़ी पकड़ने के लिए स्टेशन पर आ रुकीं । उस छोटी-सी रेलगाड़ी को सीधे पहाड़ पर चढ़ते देखकर उन्हें बड़े उत्साह का अनुभव हो रहा था। उस रेल के डिब्बे में माधवी और मुत्तुकुमरन् पास-पास बैठे थे। नीचे मुड़कर देखा तो रेलवे स्टेशन और नगर के कुछ इलाकों की बत्तियाँ उस धुंधलके में-~~ रोशनी की नन्हीं-नन्हीं बूंदें बनकर झिलमिला रही थीं।

पहाड़ी पर चढ़ने पर अब्दुल्ला के बँगले की ओर जानेवाले रास्ते से नीचे देखने पर समुद्र और पिनांय के बंदरगाह दीख पड़े। पिनांग से पिरै और पिर से पिनांग आने-जानेवाली फेरी-सर्विस की रोशनियाँ टिमटिमा रही थीं। शहर की रंग- बिरंगी बत्तियों और नियान साइन दृश्यों से आँखें आनंद से चमक रही थीं। पिनांग के हिल पार्क में थोड़ी देर बैठे रहने के बाद, वे अब्दुल्ला के बँगले में गये । अब्दुल्ला का बँगला पहाड़ी के शिखर पर बनी फिर भी शांत बस्ती में स्थित था । बँगले की ऊपरी मंजिल पर हरेक को अलग-अलग और सुविधाजनक कमरे दिये गये।

रात के भोजन के बाद हॉल में बैठे बातें करते हुए अब्दुल्ला ने कहा, 'मिस्टर गोपाल ! 'कॉकटेल मिक्स' करने में इस मलेशियन 'एट्रयिट्स' भर में मैं 'एक्स्पर्ट' माना जाता हूँ । अनेक प्रांतों के सुलतान अपना जन्म-दिन मनाते हुए 'कॉकटेल 'मिक्स' करने के लिए मुझे विशेष रूप से आमंत्रित करते हैं।"

“वह सौभाग्य मेहरबानी करके हमें भी प्रदान करें।"-गोपाल ने उनसे अनुनय किया ! माधवी और मुत्तुकूमरन् ने मुह नहीं खोला तो अब्दुल्ला ने अपनी