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114/यह गली बिकाऊ नहीं
 


किसी पर मुस्कान फेरनी हो तो वह मुत्तुकुमरन् की आज्ञा चाहेगी। हो, बिना उसकी आज्ञा के माधवी लता का अब एक पत्ता भी नहीं हिलता।

गोपाल ने देखा कि ऐन मौका हाथ से निकला जा रहा है। उसे इस बात की पहले आशा नहीं थी कि वातावरण कुछ इस तरह करवट लेगा। उसे इस बात की तनिक बू तक लगी होती तो मुत्तुकुमरन् को इस सफ़र में साथ लाया ही नहीं होता।

शुरू में ही मुझे मना कर देना चाहिए था। मैंने बड़ी भूल कर दी ! अब पछताने से क्या फ़ायदा?' गोपाल विचारों में खो गया।

'कॉकटेल-मिक्स' करके, एक में चार गिलास उठाये जब अब्दुल्ला ने मुड़कर देखा तो पाया कि वहाँ गोपाल के सिवा कोई तीसरा नहीं था।

"वे कहाँ हैं ? मैंने तो चार गिलास मिला लिये हैं।"

"न जाने, कहाँ नीचे उतर गये ! शायद टहलने गये हों।"

"आप जरा जोर डालते तो बे रुक जाते, मिस्टर गोपाल ! वह नाटककार बड़ा ढीठ है और हमेशा उसी के पीछे लगा रहता है। उसे एक गिलास देकर दो चूंट पिला देते तो माधवी आप ही वश में आ जाती।"

गोपाल ने कोई उत्तर नहीं दिया। अब्दुल्ला बोलते चले गये--- "ऐसे 'ट्रिपों में ऐसे झक्की आदमी हों तो 'ट्रिप' का मजा ही किरकिरा हो जाता है । कंपनी देने के लिए आदमी चाहिए न कि बिगाड़ने के लिए। ऐसे ढीठ और सरफिरों को तरजीह देना ठीक नहीं।"

"क्या करें? सगुन के डर से बिल्ली को गोद में लाने जैसी बात हो गयी ! इस मनहूस को साथ लाने के पाप का फल भुगतना ही पड़ेगा ।"

दोनों आमने-सामने बैठकर 'कॉकटेल' में डूब गये।

बातों की दिशा बंदलकर गोपाल ने पिनांग शहर की सुन्दरता और स्वच्छता पर विस्मय प्रकट किया।

"इसकी वजह क्या है, मालूम है ? इस शहर को संवारने का काम अंग्रेजों ने किया है। वे इसे 'जॉर्ज टाउन' मानते हैं।"

"हमारे तमिळ भाइयों के अलावा यहाँ और कौन बसे हुए हैं ?" "चीनी हैं । सेनयीन नाम से मेरे एक दोस्त हैं। उनके घर हम कल 'लंच के लिए जा रहे हैं। बड़े भारी टिम्बर मर्चेन्ट हैं वे। हांगकांग में भी उनका 'बिजनस' चलता है। बड़े मिलनसार आदमी हैं।"

"हमारे नाटकों में सिर्फ तमिळ दर्शक आते हैं या चीनी और मलेशियन आदि भी आते हैं ?"

"सब आते हैं। पर नाटकों में विशेष रुचि लेनेवाले तो तमिळ ही अधिक हैं। नांच या 'ओरियंटल डान्स' जैसा कुछ हो तो चीनी और मलेशियन अधिक तादाद