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यह गली बिकाऊ नहीं/115
 


में आते हैं। आपका नाम तो सिने-संसार में भी काफी फैला है, इसलिए अच्छी कमाई होगी । पिनांग की ही बात लीजिए तो पहले के दो दिनों तक खेले जानेवाले नाटक तो अभी से हाउसफुल' हो गये हैं।"

"अच्छा ! दूसरे शहरों के इंतजाम कैसे होंगे?"

"क्वालालम्पुर, ईप्यो, मलाया, सिंगापुर-सभी जगहों में प्रोग्राम अच्छा ही रहेगा। सभी शहरों में आपके चाहनेवाले वड़ी तादाद में हैं।"

गोपाल 'कॉकटेल' का दूसरा प्याला भी गटक गया। अब्दुल्ला ने नौकर को बुलाकर माधवी और मुत्नुकुमरन् के बारे में पूछताछ की । पिनांग हिल पर अब्दुल्ला के बँगले के पास ही एक पार्क था। नौकर ने कहा कि दोनों उसी ओर गये होंगे। गोपाल जरा ज्यादा ही थक गया था। नशा भी चढ़ रहा था। इसलिए लड़खड़ाते पैरों अपने कमरे में गया और बिस्तर पर गिर गया।

अब्दुल्ला नाइट गाउन पहनकर हाथ में पाइप लिये आये और द्वार पर कमरे के अन्दर सोफ़ा लगवाकर बैठ गये। उनके मुख से पाइप का गोलाकार धुआँ सिर पर गुम्बद-सा बनाता और मिटाता जा रहा था ।

उनके मन से माधवी की याद मिटी ही नहीं। सच पूछा जाएं तो नशे-पर-नशा चढ़ा था । पिनांग शहर में ही उनका एक बैंगला था। उसमें घर के लोग रहते थे। इसीलिए वे 'हिल' वाले बँगले पर आये थे। उन्हें इस बात की तकलीफ़ हो रही थी कि यहाँ आकर भी हम माधवी को वश में नहीं कर पाये। अब वे इसी ताक में उसके लौटने की राह पर बैठे थे कि कोई-न-कोई व्यूह बनाकर किसी-न-किसी तरह, माधवी को वश में कर लें।

द्वार के बाहर कोहरा धुएँ की तरह छाया हुआ था। धीरे-धीरे सरदी भी बढ़ने लग गयी थी।

नीचे समुद्र में उस पार से पिनांग द्वीप को जोड़नेवाले फेरी बोट आते 'साइरन बजा रहे थे। उनकी मंद-मंद ध्वनि कानों में सुनायी दे रही थी। उस पार के, पिरै की बत्तियाँ धुंधली दिखायी दे रही थीं। समुद्र के जल में प्रकाश में धुली-मिली छाया लहरा रही थी।

बड़ी लम्बी प्रतीक्षा के बाद माधवी और मुत्तुकुमरन् हाथ-में-हाथ लिये आ पहुँचे। सामने अब्दुल्ला को बैठे देखकर दोनों के हाथ अलग हो गये। ऐसा लगा कि अपनी प्राकृतिक घनिष्ठता को अस्वाभाविक ढंग से काटकर दोनों एक-दूसरे से विलग होकर आ रहे हैं।

माधवी के जूड़े में पिनांग हिल पार्क में खिले सफेद रंग के गुलाबों में से एक, दो पत्तों सहित तोड़कर खोसा हुआ था। अब्दुल्ला ने जब यह देखा तो उन्हें याद आया कि यहाँ से जाते हुए उसके बालों पर कोई फूल न था। उन्होंने मुत्तुकुमरन्