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122/ यह गली बिकाऊ नहीं
 

इसके बाद माधवी ने कोई दलील नहीं दी। उस रात के भोज में वे दोनों सम्मिलित हुए।

भोज एकदम पाश्चात्य तरीके का था। बड़े-बड़े कॉस्मापालिटन्स को आमंत्रित किया गया था। कुछ मलायी, चीनी, फिरंगी और अमेरिकन अपने-अपने कुटुंब के साथ आए थे।

भोज के उपरांत , एक दूसरे हाल में आए हुए औरत-मर्द हाथ में हाथ लिये 'डान्स' करने लगे। मुत्तुकुमरन और माधवी एक ओर लगी कुर्सियों पर बैठकर बातें करने लगे । गोपाल भी एक चीनी युवती के साथ नाच रहा था । उस समय अब्दुल्ला ने माधवी के पास आकर अपने साथ 'डान्स' करने के लिए बुलाया।

“एक्स्क्यूज मी, सर ! मैं इनके साथ बातें कर रही हूँ।" माधबी ने सादर जवाब दिया। पर अब्दुल्ला ने नहीं छोड़ा। लगा कि उन्होंने अपनी हवस पूरी करने के लिए ही इस भोज का इन्तजाम किया है। उसके पास बैठकर बातें करने वाले मुत्तुकुमरन्' को नाचीज़ समझकर वे माधबी के सामने दाँत निपोरकर गिड़डिडाने लगे। मुत्तुकुमरन्, जहाँ तक संभव हुआ, उनके बीच में नाहक पड़ना या जवाब देना नहीं चाहता था । पर बात जब हद से बाहर हो गयी तो वह चुप्पी साधे बैठा, नहीं रह सका । अपने उन्माद में एक बार अब्दुल्ला अपने को काबू में नहीं रख सके और जोश में भरकर माधवी का हाथ पकड़ कर खींचने लग गये।

"अनिच्छा प्रकट कर रही युवती का हाथ पकड़कर खींचना ही यहाँ की सभ्यता है क्या ?" उसने पहले-पहल अपना मुंह खोला । यह सुनकर अब्दुल्ला तैश में आकर आँखें तरेरते हुए उस पर पिल पड़े--"शट अप। आई एम नाट टॉकिंग विद् यूं।"

माधवी तो अब उनसे और घृणा करने लगी। इसके बाद ही गोपाल उसके पास दौड़ा भाया और अब्दुल्ला की वकालत करते हुए बोला, "इतने सारे रुपये खर्च करके इन्होंने हमें बुलाया है। हमारे स्वदेश लौटने तक ये हमारे लिए बहुत कुछ करना चाहते हैं। उनका दिल क्यों तोड़ रही हो?"

"नहीं, मैं किसी के कहने पर नहीं नाच सकती !"

माधवी के इस इनकार के पीछे गोपाल ने मुत्तुकुमरन् का ही हाथ पाया । उसे लगा कि मुत्तुकुमरन् पास नहीं रहता तो माधवी के मुख से इनकार के इतने कड़े शब्द नहीं निकलते । इसलिए वह चोट खाए हुए बाध की तरह दहाड़कर बोला,. "इस तरह तुम्हें डरते देखकर लगता है कि तुमने सिल पर पैर रखकर अरुंधती निहारते हुए उस्ताद का हाथ पकड़ा है और शास्त्रोक्त विवाह किया है। ऐसी शादी करनेवालियां भी यो पुरुष से उरती नहीं दीखती!'

मुत्तुकुमरन् पास ही खड़ा था । वह दोनों की बातें सुन रहा था । पर वह उनकी . बातों में नहीं पड़ा।माधवी गोपाल की बात सुनकर आक्रोश से भर गयी और बोली,