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125/यह गली बिकाऊ नहीं
 


जहाँ भो करे, अपना स्तर बनाये रखेगी।"

"आप चाहे जितना उनका पलड़ा भारी करें, कर लें लेकिन मैं नहीं मानूंगा। मैं गौर से देखकर बता रहा हूँ। सच पूछिए तो अपने अनुभव से भी बता रहा हूँ। अपने प्रियजनों को दर्शकों की गैलरी में बैठे पाकर अभिनेता ऐसा निहाल हो जाता है, मानो कोई संजीवनी मिल गयी हो। एक बार की बात है, विरुदुनगर में मारियम्मन का मेला था। मैं नाटक खेलने अपनी पहले की मंडली के साथ गया हुआ था। वहीं मेरा जनम हुआ था। मेरी बुआ की वेटी-वही मेरी मंगेतर थी- जाटक देखने आयी थी। लच मानिए, उस दिन मैंने बहुत अच्छा अभिनय किया था।"

"अच्छा ! उससे तुम्हारी मुहब्बत रही होगी?"

"अब आप आये रास्ते पर? बही बात माधवी की..."

कहते-कहते वह रुक गया । इसलिए कि मुत्तुकुमरन् की दृष्टि पर उसकी दृष्टि पड़ते ही उसकी सिट्टी-पिट्टी भूल गयी।

उस अभिनेता की बातों की सच्चाई उसे भी मान्य थी। पर माधवी के साथ, अपने प्रेम को वह जग-जाहिर होने नहीं देना चाहता था। उसे भली-भाँति मालूम था कि उसकी अनुपस्थिति में माधवी का अभिनय फीका और बे-जान हो जायेगा । इतना सबकुछ जानते हुए, माधवी का उत्साह बढ़ाने के लिए ही सही, वह पिनांग के नाटकों में सम्मिलित नहीं हुआ।

पिनांग में, अंतिम नाटक के मंचन की समाप्ति के बाद नाटक-मंडली के लोग अकेले या गोष्ठी में खरीदारी के लिए बाजार गये। वहाँ सामान सस्ते बिकते थे । 'फ्री पोर्ट' होने से पिनांग के बाजारों में तरह-तरह की कलाई घड़ियाँ, टेरिलिन, रेयान, टेरिकाट, सिल्क, रेडियो जैसे बहुत सारे नथे-नये सामान पहाड़-से लगे थे। गोपाल ने अब्दुल्ला से पेशगी लेकर अपनी मंडली के हर स्त्री-पुरुष को सौ-सौ मलेशियन रुपये दिये। मुत्तुकुमरन् और माधवी को ढाई सौ के हिसाब से पाँच सौ रुपये एक लिफ़ाफ़े में रखकर माधवी के हाथ में दे दिये । सीधे मुत्तुकुमरन् से मिलने और उसके हाथ रुपये देने को उसे डर लग रहा था। माधवी ने भी हिचकते हुए ही वे रुपये लिये।

"एक बात उनसे भी कह दीजिए । मैं उनकी अनुमति के बिना यह राशि लूंगी तो शायद वे नाराज हो जायेंगे !"

माधवीं के मुख से इधर हिचकते-हिचकते बात फूटी और उधर गोपाल के मुख से काफी कड़क भरी आवाज़ फटी-"वे कौन होते हैं तुम्हारे ? नाम लेकर भुत्तुकुमरन् क्यों नहीं कहती?"

माधवी ने इसका कोई जवाब नहीं दिया । गोपाल आग उगलती आँखों से उसे देखकर चला गया। लेकिन उसने सख्ती का चाहे जैसा व्यवहार किया, वह