'शॉपिंग' वापसी में हम सिंगापुर में कर लेंगे !"
माधवी ने मुत्तुकुमरन् की यह बात मान ली। उसी समय दोनों ने यह भी प्रतिज्ञा की कि अब्दुल्ला और गोपाल चाहे जितना भी रूखा व्यवहार करें, हमें विचलित नहीं होना चाहिए। लेकिन उसी दिन शाम को ईप्पो चलते हुए तलवार की धार से गुजरना पड़ा।
नाटक के थोक ठेकेदार अब्दुल्ला ने अपने साथ ईप्पो चलने के लिए गोपाल और माधवी के लिए वायुयान का प्रबंध करके बाकी सभी के लिए कारों की व्यवस्था कर दी। इससे मुत्तुकुमरन् को कार में जाने वालों में सम्मिलित होना पड़ा।
चलने के थोड़ी देर पहले ही माधवी को इस बात का पता चला । उसने गोपाल के पास जाकर बड़े धैर्य से कहा, "मैं भी कार ही में आ रही हूँ। आप और अब्दुल्ला 'प्लेन' पर आइये।"
"नहीं ! ईप्पो वाले हमारे स्वागत के लिए 'एयरपोर्ट' आये होंगे।"
"आये हों तो क्या? आप तो जा रहे हैं न ?"
"जो भी हो, तुम्हें 'प्लेन' में ही चलना चाहिए !
"मैं कार में ही आऊँगी।”
"यह भी क्या ज़िद है ?"
"हाँ, ज़िद ही सही।"
"उस्ताद को प्लेन का टिकट नहीं दिया गया- इसीलिए यह हंगामा कर रही हो?"
"आप चाहे तो वैसा ही मानिए । मैं तो उन्हीं के साथ कार में ईप्पो आऊँगी।"
"यह उस्ताद कोई आसमान से अचानक तुम्हारे सामने नहीं टपक पड़ा ! मेरे ही कारण तुम्हारी उससे दोस्ती है !"
"कौन इनकार करता है ? उससे क्या ?"
"बढ़-बढ़कर बातें करती हो ? तुम्हारा मुँह बहुत खुल गया है !"
"नयी जगह में हमारे हाथ बँधे हैं। मैं कुछ नहीं कर पा रहा। अगर मद्रास होता तो गधी कहीं की ! हट जा मेरे सामने से' कहकर गरदनी देकर निकालता और तुम्हारी जगह किसी दूसरी हीरोइन को एक रात में पढ़ा-सुनाकर मंच पर खड़ा कर देता।"
"ऐसा करने की नौबत आये तो वह भी कर लीजिए ! पर हाँ, पहले अपने मुंह की थूक गटक लीजिए।"
यह सुनकर गोपाल हैरान रह गया.। इसके पहले माधवी के मुख से ऐसी करारी चोट खाने का मौका ही नहीं आया था। 'मुत्तुकुमरन का सहारा पाकर माधवी लता इतराने लगी है। अब इससे टकराना ठीक नहीं है--सोचकर गोपाल