ने उसका पीछा छोड़ दिया । आखिर अब्दुल्ला, गोपाल और उदयरेखा हवाई जहाज से ही गये । माधवी मुत्तुकुमरन और मंडलीवालों के साथ कार में आयी।
माधवी का दिल दुखाने के विचार से उसके नाम से आरक्षित हवाई जहाज के टिकट पर ही उदयरेखा का नाम चढ़वाकर बे उसे हवाई जहाज़ से ले गये। पर माधवी ने इस बात का ख्याल तक नहीं किया कि वे किसे हवाई जहाज़ पर ले जा रहे हैं।
लेकिन दूसरे दिन सवेरे उदयरेखा ही सबके सामने यह ढिंढोरा पीटे जा रही थी कि अब्दुल्ला के साथ वह पिनांग से हवाई जहाज पर आयी थी । वह चाहती थी कि उसकी बढ़ी हुई हैसियत का मंडलीवालों को पता चल जाये। इस स्थिति में, शायद उसकी यह धारणा रही हो कि इससे मंडलीवालों पर उसका रोब-दाब जम जायेगा।
ईप्पो में पहले दिन के नाटक की टिकट बिक्री काफ़ी अच्छी रही। दूसरे दिन भी वसूल में कोई कमी नहीं थी। फिर भी अब्दुल्ला की गोपाल से यह शिकायत थी कि पितांग का-सा वसूली ईप्पो में नहीं है । नाटक के दूसरे दिन तेज़ बरसात हो जाने से, गोपाल के हिसाब से वसूल में वह तेजी नहीं रही।
ईप्पो में रहते हुए दोनों दिन दोपहर के वक्त उन्होंने दर्शनीय स्थलों को देख लिया। नाटक-मंडली का अगला पड़ाव क्वालालम्पुर था । बीच में एक दिन आराम के लिए रह गया था।
अब्दुल्ला, उदयरेखा और गोपाल ने 'कैमरान हाईलैंड्स' नाम के पहाड़ी आरामगाह तक हो आना चाहा। लेकिन उस एक दिन के लिए सारी नाटक-मंडली को वे ले जाने को तैयार नहीं थे।
"तुम चाहो तो आ सकती हो !" गोपाल ने सिर्फ माधवी से कहा ।
"मैं नहीं आती !" माधवी ने संक्षेप में उत्तर देकर उससे पिंड छुड़ाना चाहा । लेकिन गोपाल ने यों ही नहीं छोड़ा। बोला, "उदयरेखा को भेजने के बाद भी, अब्दुल्ला तुम्हारी ही याद में घुले जा रहे हैं।"
"उसके लिए मैं क्या करूँ ? मैंने कह दिया कि मैं कैमरान हाईलैंड्स' नहीं आती। उसके बाद भी आप वही बात दुहरा रहे हैं। मेरे पास इसके सिवा दूसरा कोई जवाब नहीं है।"