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132/यह गली बिकाऊ नहीं
 


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माधवी ने कोई उत्तर नहीं दिया ।

मुत्तुकुमरन् ने भी महसूस किया कि उसके प्रति ऐसी कड़ी बातें मुंह में नहीं लाना चाहिए। जब कभी वह उसके साथ इस तरह पेश आता तो वह चुप्पी साध लेती थी। उसे उसपर बड़ा तरल हो आया। निहत्थे और निर्बल विपक्षी पर हथियार चलाकर अपना शौर्य दिखाने-जैसा लगा।

क्वालालम्पुर में उसे और माधवी को अप्रत्याशित रूप से एक सुयोग हाथ लगा। अब्दुल्ला, उदयरेखा और गोपाल के लिए 'मेरीलिन होटल' नाम के शान- दार होटल में ठहरने की व्यवस्था की गयी। बाकी लोगों के लिए एक दूसरी जगह पर 'स्ट्रेथिट्स होटल' नाम का साधारण-सा होटल चुना गया । व्यवस्था करने के पहले गोपाल ने माधवी से कहा, "तुम्हें कोई आपत्ति न हो तो हमारे साथ 'मेरी-- लिन होटल में ठहर सकती हो। लेकिन उस्ताद के लिए वहाँ कोई बंदोबस्त नहीं हो सकता।"

"कोई जरूरत नहीं । मैं यहाँ नहीं ठहरूँगी । वहीं ठहरूँगी, जहाँ वे ठहरे हैं।" माधवी ने दो-टूक जवाब दे दिया।

ऊँचे-ऊँचे मकान, और स्थान-स्थान पर लगे चीनी, मलेशियन और अंग्रेज़ी अक्षरों में चमाचम चमकते नियान साइन और उनकी रोशनी से जगमगाते बोर्ड पंग-पग पर यह बता रहे थे कि वे बिलकुल एक नये देश में आये हैं। सड़कें साफ़- सुथरी और रौनक भरी थीं। वहाँ किस्म-किस्म की छोटी-बड़ी नयी-नयी कारों की भरमार-सी थी । भद्रास में उनका नमूना भी शायद ही देखने को मिले। चीनी कौन हैं और कोन मलायी-शुरू-शुरू में उनका फ़र्क करना भी बड़ा मुश्किल लगा।

जिस दिन वे वहाँ पहुँचे थे, उसके दूसरे दिन वहाँ के एक तमिळ दैनिक में गोपाल से एक साक्षात्कार छपा था। उसमें एक प्रश्न यह पूछा गया था, "आप यहाँ जो नाटक खेलनेवाले हैं-'प्रेम एक नर्तकी का', उसके बारे में अपने मलाया- वासी तमिळ भाइयों को बतायेंगे कि उसका बीजांकुर कैसे पड़ा?"

"मलायाधासी तमिळ भाइयों को ध्यान में रखकर ही इस नाटक की पूरी योजना मैंने स्वयं बनायी है। इसकी सफलता को मैं अपनी सफलता मानूंगा।" उस सवाल का गोपाल ने यों जवाब दिया था।

उसे पढ़कर माधवी और मुत्तुकुमरन् को बड़ा गुस्सा आया । माधवी ने अपने मन की यों रखी, "औपचारिकता-निर्वाह के लिए ही सही, नाटककार के रूप में उसने आपका नाम तक नहीं लिया। ऐसा उत्तर देते हुए वह कितना मदान्ध है ?"

"तुम्हारा कहना गलत है, माधवी ! उसमें मद-वद कुछ नहीं। वह स्वभाव से ही बड़ा कायर है । बस, ऊपरी तौर पर बड़ा धीर-वीर होने का नाटक करता है । मेरे