पृष्ठ:Yeh Gali Bikau Nahin-Hindi.pdf/१३५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
134/ यह गली बिकाऊ नहीं
 

ठहरे हुए हैं। उन्हें छोड़कर आना ठीक नहीं । वे भी हमें नहीं छोड़ेंगे।"

"अच्छा ! स्ट्रेयिट्स होटल को मैं कल दोपहर को गाड़ी भेज दूंगा।" कहकर रुद्रप्प रेड्डियरर विदा हुए।

उनके जाने के बाद उनके बारे में मुत्तुकुमरन् ने माधवी को बताया कि उससे उनका परिचय कब हुआ और कैसे हुआ तथा उनमें क्या-क्या खूबियाँ हैं।

दसगिरि से जब वे होटल को लौट आये, तब गोपाल भी अप्रत्याशित रूप से वहाँ आया था।

'कहो, उस्ताद ! इस होटल की सुख-सुविधाएँ कैसी हैं ? किसी चीज़ की जरूरत हो तो बताओ ! मैं तो किसी दूसरी जगह ठहर गया हूँ, इसलिए अपनी तकलीफ़ों को छिपाये न रखो।" गोपाल यों बोल रहा था, मानो किसी ट्रेड यूनियन के लीडर से कारखाने का कोई मालिक शिकायतें पूछना हो।

सच्चे प्रेम से कोसों दूर और औपचारिक ढंग से पूछी जानेवाली इन बातों को मुत्तुकुमरन ने जरा भी महत्व नहीं दिया और चुप्पी साधे रहा।

उसके जाने के 'बाद, माधवी ने मुत्तुकुमरन् से कहा, "देख लिया न, पूछ-ताछ करने का तौर-तरीका ! बातें दिल से नहीं, होंठों से फूट रही थीं।"

"छोड़ो, उसकी बातों को ! उसे शायद यह डर लग गया होगा कि हम उसके बारे में कैसी बातें कर रहे हैं । उसी डर से वह एक बार हमें देख जाने के लिए आया होगा।"

"उदयरेखा तो इस तरफ़ एकदम आयी ही नहीं। अब्दुल्ला के साथ ही चिपककर रह गयी।

"कैसे आती ? अब्दुल्ला छोड़े, तब न ?"

सुनकर माधवी हँस पड़ी। मुत्तुकुमरत् ने अपनी बात जारी रखी-"अब्दुल्ला उसे छोड़ेगा नहीं। और वह भी कौन-सा मह लेकर हमें देखने आयेगी? शरम नहीं लगती होगी उसे ?"

"इसमें शरम की क्या बात है ? गोपाल के पास आने से पहले, वह हैदराबाद में जैसी थी, वैसी ही अब भी है।"

"नाहक़ दूसरों को दोष न दो। बेचारी पर दोष मढ़ना ठीक नहीं। मेरे ख्याल से पहले-पहल कोई लफंगा-लुच्चा ही उसे इस लाइन में खींचकर लाया होगा। पेट की भूख भला-बुरा नहीं पहचानती! सच पूछो माधवी तो मुझे ऐसे लोगों से हम- दर्दी ही होती है।"

उसने उदयरेखा के बारे में बोलता वहीं से बन्द कर दिया। और थोड़ी देर तक उसकी बातें करती रहती तो उसे डर था कि अंततः वह बात उसी पर केन्द्रित हो जाएगी।