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यह गली बिकाऊ नहीं/१३
 


मुताबिक अपना तरीका अख्तियार करूँगा।

नाट्य कंपनी में काम करते हुए जिन दिनों नाटक नहीं होते थे, दोनों-वह और ' गोपाल---रात को सिनेमा देखने चले जाते थे। आधी रात के बाद लौटकर एक ही चटाई पर सोते थे।

उन पुरानी रातों की याद आते ही, मुत्तुकुमरन् को यह शंका हुई कि क्या गोपाल अभी भी उतना ही धनिष्ठ, आत्मीय और मिलनसार होगा!

पैसा मनुष्य और मनुष्य के बीच स्तर-भेद पैदा कर देता है । उसके साथ नाम- यश, रोब-दाब आदि मिल जाएँ तो यह खाई और बढ़ जाती है। यह भेद-भाव को शिखर पर चढ़ाता है और कुछ को गड्ढे में गिरा देता है । क्या शिखर पर खड़ा व्यक्ति गड्ढे में पड़े लोगों को कहीं बराबरी की दृष्टि से देखेगा?

भूकंप में समतल भूमि जैसे ऊँची हो जाती है और ऊँची भूमि नीचे दब जाती है, वैसे ही धन-दौलत का भूकंप आने पर कुछ चोटियाँ उग आती हैं । उन चोटियों की वजह से उनके आसपास की भूमि घाटियों में बदल जाती हैं । घाटियां बनायी नहीं जातीं । चोटियों के बनने पर, समतल भूमि भी घाटियों का-सा भ्रम पैदा करती हैं, बस !

चोटी और घाटी का स्वरूप चित्रण करते हुए उसका कवित्वसंपन्न स्वाभिमानी हृदय यह मानने को हिचका कि गोपाल चोटी पर है और वह घाटी में ।

धान के खेत में जैसे घास सिर उठाती है, वैसे कवित्व से पूर्ण उर्वर मनोभूमि में गर्व का सिर उठाना स्वाभाविक है। गर्व के दो प्रकार होते हैं। सुरम्य और कुरम्य । कवि हृदय में उत्पन्न होनेवाला गर्व सुरम्य होता है-

गुलाब की लाली सुरम्य और आँखों को आराम देनेवाली होती हैं । कनेर की लाली तो आँखों में चुभती है । सुकवि का गर्व गुलाब की लाली के समान होता है और कवित्वशून्य का गर्व कनेर पुष्प का-सा होता है।

मुत्तुकुमरन् के हृदय में यही सुरम्य गर्व विराजमान था। इसलिए वह अपने. मित्र गोपाल को अपने से भिन्न और अपने से बढ़कर ऊँचाई में रहनेवाला मानने: को तैयार नहीं था । अपनी बड़ाई को भूलना या घटाना भी उसे स्वीकार नहीं था।

वहाँ का वातावरण-~~-यानी वह 'हाल', उसका चमकता संगमरमर का फर्श, उस पर सुन्दर कालीन, करीने से लगे सोफे, उनपर सुन्दर परियों-सी बैठी युवतियाँ उनकी बहुरंगी वेश-भूषा और शरीर पर लगे इत्र की महक-यह सब मिलकर, उसके अंदर सोये हुए सुरम्य गर्व को उजागर करनेवाला ही सिद्ध हुआ। कली के अंदर संपुटित सुगंध की भाँति (ो जाने पर भी न मिलनेवाली उसकी गर्व-माधुरी विद्यमान थी।

गोपाल अभी हाल में नहीं आया था। पर किसी भी क्षण आने की संभावना थी। मुत्तुकुमरन् के मन में रह-रहकर गोपाल के विषय में पुरानी स्मृतियाँ लहरा