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यह गली बिकाऊ नहीं / 145
 


नाटकों में भी काफ़ी अच्छी वसूली रही। एकाएक बारिश हो जाने से अंतिम दो दिन वसूली कुछ कम रही। अब्दुल्ला के ही शब्दों में वैसे कोई नुक़सान नहीं उठाना पड़ा।

सिंगापुर में भी वे लोग कुछ जगहों में घूम आये। जैसे जुरोंग औद्योगिक बस्ती, टाइगर वाम गार्डन्स, क्वीन्स टाउन की ऊंची इमारतें वगैरह। 'टाइगर बाम' बगीचे में, चीनी पुराणों के आधार पर पत्थर-चूने से बनी आकृतियों में बहुत भयंकर दृश्य चित्रित किये गये थे। उनमें यह दर्शाया गया था कि संसार में पाप करनेवाले कैसे-कैसे दंड भोगते हैं? किसी पापी को नरक में आरे से चीरा जा रहा था। किसी के सिर में लोहे की कीलें ठोंकी जा रही थीं। किसी को आग की लपटों में नगे शरीर झोंका जा रहा था। देखनेवालों में दहशत-सी फैल जाती। मुत्तुकुमरन ने हँसते हुए कहा, "मद्रास में रहनेवाले सभी सिने कलाकारों को बुला लाकर इन दृश्यों को बार-बार दिखाना चाहिए माधवी!"

"कोई जरूरत नहीं।"

"क्यों? ऐसा क्यों कहती हो?"

"इसलिए कि ऐसी करतूतें वहाँ प्रतिदिन होती ही रहती हैं।"

यह सुनकर मुत्तुकुमरन् ठहाका मारकर हँसा। माधवी भी उसकी हँसी में शामिल हुई। मद्रास रवाना होने के दिन सवेरे ही वे 'शॉपिंग' को चले । कपड़े की दुकान में जाने पर मुत्तुकुमरन ने कहा, "मुझे भी एक साड़ी खरीदनी है! तुम्हारी मुँह-दिखाई के अवसर पर देने के लिए।"

माधवी का चेहरा लज्जा से लाल हो गया।

शाम को सिंगापुर में भी एक विदाई-पार्टी का आयोजन किया गया था। उससे निपटकर, अपनी नाटक-मंडली के जहाज द्वारा लौटने की व्यवस्था का भार अब्दुल्ला को सौंपकर गोपाल, मुत्तुकुमरन् और माधवी हवाई जहाज़ पर सवार होने के लिए हवाई अड्डे को रवाना हुए। मद्रास जानेवाला एयर इंडिया का हवाई जहाज़ आस्ट्रेलिया होता हुआ सिंगापुर आता था और सिंगापुर से मद्रात को रवाना होता था। उस रात को आस्ट्रेलिया से ही वह देर से रवाना हुआ। अब्दुल्ला, नाटक-मंडली के सदस्य और सिंगापुर के कला-रसिक देर-अबेर का ख़्याल किये बिना विदा करने के लिए हवाई अड्डे पर आये हुए थे।

हवाई ज़हाज़ के सिंगापुर से रवाना होते समय ही बड़ी देर हो गयी थी। अतः मद्रास पहुंचते-पहुँचते रात के साढ़े बारह बज गये थे। कस्टम्स फार्मेलिटी से निवृत्त होकर बाहर आने तक एक बज गया था। उस वक्त भी गोपाल और माधवी का स्वागत करने के लिए बहुत-से लोग फूल-मालाओं के साथ आये थे। उसमें लगभग आधा घंटा लग गया।

गोपाल के बँगले से कारें आयी हुई थीं। एक कार में तो सिर्फ सामान -ही-सामान भर गया। दूसरी कार में वे तीनों वहाँ से चले। घर आते-आते दो बज गये थे।