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150 / यह गली बिकाऊ नहीं
 


रह सकते हैं? यों अभिनय करते रहें तो अक़्ल निश्चय ही मारी जायेगी। हमें जीना भी हैं। बिना जीवन जिये, कोई हमेशा अभिनय करता रहे तो कला कला नहीं रहेगी और उससे अच्छी कला नहीं पनपेगी। गोपाल को अपना जीवन सुधारना है और उसे नियम से जीना है तो उसे विवाह करके नियमबद्ध जीवन जीने का अभ्यास करना चाहिए। नहीं तो वह सिर्फ़ बुरा ही नहीं, बरबाद भी हो जायेगा। इसी बँगले को ही लो, यह भूत-बँगला बना हुआ है। द्वार पर चौक पूरने के लिए इस घर में कोई सुमंगला स्त्री नहीं। नौकर-चाकर, बाग-बगीचे, गाड़ी-बाड़ी, रुपये-पैसे सब कुछ हैं भी तो उनका क्या फ़ायदा? एक बच्चे की तोतली बोली भी अब तक इस बँगले में सुनायी नहीं पड़ी। लक्ष्मी भला ऐसी जगह में निवास करेगी?"

माधवी यों मौन रही, मानो उसकी सारी बातों में हामी भर रही हो। 'आउट हाउस' के द्वार पर खड़े होकर दोनों बातें कर रहे थे कि छोकरा नायर वहाँ पर आया। माधवी ने उसे एक टैक्सी लाने के लिए भेजा। टैक्सी आयी। लड़का माधवी से अकेले में कुछ बोल रहा था। उसकी आँखें छलक रही थीं।

"आपके पास पाँच रुपये हैं तो दीजिये!" कहकर माधवी ने मुत्तुकुमरन् से पाँच रुपये लिये और उस लड़के के हाथ में रख दिया। लड़के ने हाथ जोड़े। उसकी आँखें फिर भर आयी थीं।

"अगले हफ्ते पिनांग से जहाज के आ जाने पर उदयरेखा इसी आउट हाउस में आकर ठहरनेवाली है। गोपाल के मुख से लड़के ने यह बात सुनी है।"―माधवी ने बताया।

"सो तो ठीक है। अब्दुल्ला उसे पिनांग से आने दे तब न?"

सुनकर माधवी को हँसी आयी।

"छोड़ो ये भद्दी बातें। अच्छी बातें करो।" मुत्तुकुमरन् ने कहा।

दोनों टैक्सी पर बैठे। लड़का मुत्तुकुमरन् और माधवी के सामान टैक्सी पर रखकर एक ओर खड़ा हुआ। मुत्तुकुमरन् ने माधवी से पूछा, "कहाँ चलें? तुम्हें अपने घर में छोड़कर मैं एग्मोर लाज चला जाऊँ?"

"हैं, बड़े बनते हैं। लाज जाते लाज नहीं आती? मैं तो सान भी लू, लेकिन आपको सास नहीं मानेगी। बिना जिद पकड़े सीधे हमारे घर आइये।"

माधवी की ये बातें उसे बहुत पसन्द आयीं।

टैक्सी बढ़ी। टैक्सीवाले को लाइडस रोड जाने को कहकर माधवी मुत्तुकुमरन् की ओर मुड़ी। मुत्तुकुमरन् ने उससे पूछा, "और एक बात तुमसे पूछू?"

"पूछिये।"

"घर में कितनी चारपाइयाँ हैं ?"

"क्यों, दो हैं।"

"नहीं होनी चाहिए।"