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{{rh|||यह गली बिकाऊ नहीं/15


"छोडो यार ! इन लोगों को इन्टरव्यू के लिए बुलाया था ! वह पूरा कर लूँ या कल आने को कहूँ ? जैसा तुम कहोगे, वैसा करूँगा।"

"अरे नहीं, ये लोग बड़ी देर से बैठे हैं । इनके काम से निबट लो । मुझे कोई जल्दी नहीं है ! " मुत्तुकुमरन ने कहा।

"अच्छा, तुम कब आये और कहाँ ठहरे हो ?' "हमारी बात बाद को होगी। पहले इन लोगों से मिल लो !"

मुत्तुकुमरन की इस मेहरबानी का एहसान जताते हुए मछली की तरह आँखों वाली कई युवतियाँ इस तरह देखने लगीं मानो उसे निगल ही जाएँगी एक साथ सभी युवतियों को आकर्षित करने से उसका हृदय गर्व से और भी भर उठा।

नाटक मंडली के लिए अभिनेता-अभिनेत्रियों का चुनाब शुरू हुआ। मुत्तुकुमरन जरा दूर से सोफे पर बैठकर 'इन्टरव्यू' का तमाशा देखने लगा। पाश्चात्य देशों की तरह यद्यपि गोपाल ने उनके वक्षस्थल, कटि प्रदेश और लंबाई-मोटाई की नाप नहीं ली; लेकिन अपनी लोलुप दृष्टि से इन्हें नाप रहा था । कुछ अति सुन्दर लड़किय को विभिन्न कोणों में खड़ाकर गोपाल मजे लूट रहा था, मानो किसी विशेष अभिनय के लिए उन्हें 'पोज' देने के लिए कह रहा हो । वे लड़कियाँ भी बिना किसी आनाकानी के, उसकी आज्ञा का पालन कर रही थीं। मर्दो की इन्टरव्यू में कुछ अधिक समय नहीं लगा। कुछ सवाल-जवाब में मर्दो की इन्टरव्यू खत्म हो गयी। . डाक से सूचना देने का आश्वासन देकर उसने सबको विदा किया। फिर मुत्तुकुमरन् के पास जाकर ऐसी मर्यादा से बैठा, जैसे कोई सुशीला पत्नी पति के पास जाकर बैठती हो।

"क्यों, गोपाल ! तुम सचमुच नाटक कंपनी चलाने वाले हो या इस बहाने इन लड़कियों के चेहरे-मोहरे देखने का ढोंग रच रहे हो ? कहीं इस बात का बदला तो नहीं ले रहे कि उन दिनों स्त्री का पार्ट करने के लिए लड़कियाँ तैयार नहीं होती थीं और उनका 'पार्ट' तुमको अदा करना पड़ता था !"

"तब का नखरा, अब भी ज्यों का त्यों तुम में मौजूद है गुरु ..! अच्छा, अभी तक तुमने यह नहीं बताया कि तुम कहाँ ठहरे हो ?"

मुत्तुकुमरन् ने एल्डंबूर के उस लॉज का नाम बताया, जिसमें वह ठहरा हुआ था।

"मैं अपने ड्राइवर को भेजकर, लॉज का हिसाब चुकता कर तुम्हारा बोरिया- बिस्तर यहीं लाने को कहता हूँ। यहाँ एक. 'आउट हाउस' है। वहाँ ठहर सकोगे न?"

"हाँ, एक शर्त पर !"

"कौन-सी?"

"नाथ ! जैसी आपकी इच्छा-यह वाक्य- एक बार स्त्रियों की-सी