तो लोग क्या समझे?"
"जो चाहें, समझें । चूंकि मैं बर्दाश्त नहीं कर सकी; इसीलिए आपको बुलाया ! इसमें कोई गलती है ?"
इस अंतिम वाक्य में, जो प्रश्न था, वह उसे गुड़-सा मीठा लगा। सुननेवाले को तो यह नशे के नशे से भी बढ़कर बड़ा नशा लगा। उसे लगा कि संसार में सबसे पहले मधु का स्रोत नारी-कंठ और अधरों से ही बहा होगा। ऐसी मधुमती माधवी से बात करने का सौभाग्य पाकर मुत्तुकुमरन् अपने को बड़ा धन्य समझने लगा। तनिक होश में आकर उसने सोचा कि इस तरह माधवी के फ़ोन करने का क्या कारण हो सकता है ? लेकिन कारण को पीछे ढकेलकर बही उसके अंतःपटल पर आ खड़ी हो गयी। एक क्षण के लिए उसके मन में यह संदेह-सा हुआ कि उसके . फोन करने के पीछे शायद यह आशय हो कि मुझसे दोस्ती बढ़ाकर मेरी सिफ़ारिश और मेहरबानी से गोपाल की नाटक मंडली में प्रमुख स्थान पाया जा सकता है। किन्तु अगले ही क्षण उसी के मन ने उस भ्रम को मिटाकर कहा कि बात वह नहीं, शायद उसके दिल में तुम्हें प्रवेश मिल गया है। उसके फोन करने के पीछे इसी प्रेम-भावना का हाथ है।
उस रात को वह मीठे सपनों में खोया रहा । सोकर उठा तो लगा कि पौ कुछ पहले ही फट गयी है. और सूरज में. बड़ी उतावली दिखा दी है । असल में 'बेड- कॉफ़ो' के साथ, नायर छोकरे के जगाने के बाद ही वह उठा था। कुल्ला करने के बाद जब उसने गरम कॉफ़ी पी तो मन में उत्साह और उल्लास भर गया 'आउट हाउस' के बरामदे पर आकर सामले के बगीचे पर नज़र दौड़ायी तो उसकी आँखों के सामने बड़ा ही मनोरम दृश्य उपस्थित था। ओस कणों में नहायी हरी घास की फर्श झिलमिला रही थी। उस हरीतिमा में लाल गोटे की तरह गुलाब खिले थे। एक और पारिजात का पेड़ था, जिसके फूल हरी घास पर चौक पूर रहे थे। कहीं से रेडियो में 'नन्नु पालिम्ब' मोहन राग का गीत हवा में तिरता आ रहा था।
सामने का बगीचा, प्रातःकाल की खूनक और गीत की माधुर स्वर-लहरी- ये तीनों मिलकर मुत्तुकुमरन् को आह्लादित कर रहे थे। उस आह्लाद में उसे माधवी का स्मरण हो आया। पिछली रात को टेलिफ़ोन में बेवक्त गूंजती आवाज़ भी याद हो आयी।
कुछ लोगों के गाने पर ही संगीत की रचना होती है जबकि कुछ लोगों के बोलने पर भी संगीत बन जाता है। माधवी की बोली में वही जादू था। माधवी के कंठ में शायद कोयल बैठी थी। कोयल जैसे अंतराल दे-देकर कूकती है, वैसे ही वह बोल रही थी। मुत्तूकुमरन् को उसकी स्वर-माधुरी की तारीफ़ में एक गीत. रचने की कविता लिखने की इच्छा हुई।