"सुख बयार का, स्नेह मधु का,
जिसने पाया हो सुमधुर कंठ
उसकी वाणी में गीत घुला
जैसे मंच पर गीत का गान
मन में भी गूंजे वैसी तान
उससे भी सूक्ष्म है एक संगीत
जो अनहद नाद कहाता है;
कोई डूब के ही सुन पाता है।"
इस आशय का एक गीत रचकर उसने मन-ही-मन गुनगुनाया। कहीं वह छन्दो बद्ध था और कहीं शिथिल । फिर भी उसे इस बात का संतोष था कि यह उच्च आशय का था।
इस तरह मुत्तुकुमरन् बरामदे में खड़ा होकर बगीचे की सुषमा देख रहा था और माधवी की स्वर-माधुरी का रस ले रहा था कि गोपाल 'नाइट गाउन' में ही मुत्तुकुमरन् से मिलने 'आउट हाउस' में आ गया ।
"अच्छी नींद तो आयी, यार ?"
"हाँ, बड़े मजे की नींद सोया !"
"अच्छा, अब मैं तुमसे एक बात पूछने आया हूँ !"
"क्या ?"
"कल आयी हुई लड़कियों में से तुम किसे सबसे ज्यादा पसन्द करते हो?".
"क्यों, क्या मेरी शादी उससे कराना चाहते हो?"
"नहीं ! मैं अपनी नाटक मंडली का उद्घाटन जल्दी से जल्दी करना चाहता हो?"
हूँ। पहले नाटक का मंचन भी उसी समय कर देना है। उसके लिए सेलेक्शन' वगैरह. जल्दी हो जाए तो अच्छा रहेगा न ?"
."हाँ, कर लो!"
"करने के पहले तुम्हारी भी सलाह चाहता हूँ !"
"इस विषय में मैं 'अभिनेता सम्राट' को सलाह क्या दूं ?"
"यह कैसा मज़ाक है ?"
"मजाक नहीं, सच्ची बात है।"
.."इन्टरव्यू के लिए जो दो युवक आये थे, मैंने उन दोनों को लेने का निश्चय कर लिया है। क्योंकि वे दोनों संगीत नाटक अकादेमी के सेक्रेटरी चक्रपाणि की सिफ़ारिश लेकर आये थे!"
"अच्छा! ले लो। फिर...?"
"आयी हुई लड़कियों में..."
"सभी सुन्दर हैं !"