पृष्ठ:Yeh Gali Bikau Nahin-Hindi.pdf/३१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
30 / यह गली बिकाऊ नहीं
 


महसूस किया कि किसी योग्य कार्य को निपटाना मात्र काफी नहीं, चार जनों को बुलाकर दावत खिलाना और झख मारकर यह मनबाना भी जरूरी है कि मैंने जो किया, वही श्रेष्ठ है !

दोपहर के दो बजे से पौने तीन बजे तक वह बिस्तर पर करवटें बदलता रहा। नींद नहीं आयी। छोकरा नायर जो अखबार छोड़ गया था, उसे पढ़ने में वह समय बीत गया।

तीन बजे के आस-पास उठकर उसने हाथ-मुँह धोया और कपड़ा बदलकर तैयार हो गया। किसी ने कमरे के दरवाजे पर धीमी-सी दस्तक दी।

मृत्तकृमरन ने किवाड़ खोला तो वेले की भीनी महक ने उसे सहलाया। माधवी आयी थी, खूब सज-धजकर । होंठों पर लिपस्टिक लगाकर शायद हल्के से उन्हें पोंछ भी लिया था।

मुत्तुकुमरन् ने मुस्कराहट के साथ उसका स्वागत किया, "मैंने समझा कि तुम्हीं होगी।"

"कैसे?"

"किवाड़ पर लगी हल्की दस्तक से ही, जिसको ध्वनि तबले से भी मीठी थी।" "चूड़ियों की झनकार भी सुन पड़ी होगी।"

हाँ कहें या ना—मुत्तुकुमरन् एक क्षण रुका और उसे निराश न करने का निर्णय कर बोला, "हाँ, हाँ! सुन पड़ी थी।"

"कहते हैं कि स्त्रियों की चूड़ियों की झनकार सुनकर कवियों की कल्पना उमगती है। आपको कोई कल्पना नहीं सूझी क्या ?" . इस ढीठ प्रश्न से मुत्तुकुमरन् तनिक अकचका गया और संभलकर बोला, "जब स्वयं कविता ही प्रत्यक्ष हो गयी तो कल्पना की क्या ज़रूरत है माधवी ?"

माधवी उसे आँखों आँखों में देखकर मुस्करायी। अपने साज-शृगार से वह धन-मोहिनी की तरह उसका मन मोह रही थी। मुत्तुकुमरन् भी उसे कुछ इस तरह देख रहा था, मानो आँखों से ही पी जाएगा।

"क्या देख रहे हैं ?"

"देख रहा हूँ कि हमारी कथा-नायिका कैसी है।"

यह सुनकर उसका गुलाबी चेहरा लाल हो गया। द्वार पर किसी के वखारने की आवाज़ आयी। दोनों ने मुड़कर देखा तो गोपाल सिता खड़ा था।

"क्या मैं अंदर आ सकता हूँ।"

"पूछतें क्या हो ? आओ ना !"

"बात यह है कि तुम दोनों बड़ी प्रसन्न मुद्रा में कुछ बातें कर रहे हो ! पता