पृष्ठ:Yeh Gali Bikau Nahin-Hindi.pdf/३२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
यह गली बिकाऊ नहीं/31
 

नहीं, इसमें तीसरा भी सम्मिलित हो सकता है कि नहीं। या कि यह दोनों तक ही सीमित है ?"

"दो के बदले तीन ! इसमें क्या फ़र्क पड़ता है ?"

"एक चीज़ में फ़र्क पड़ता है।"

"किसमें?"

"प्रेमियों के वार्तालाप में !"

गोपाल की इस बात को माधवी कहीं बुरा न मान जाए, यह देखने के लिए मुत्तुकुमरन् ने धीरे-धीरे उसके चेहरे को ताका 1 वह हँस रही थी-शरारत भरी हँसी ! लगा कि गोपाल की बात पर वह मन-ही-मन खुश हो रही थी।

गोपाल तो अविवाहित था ही, माधवी भी अविवाहिता धी और स्वयं मुत्तुकुमरन् भी अविवाहित था : तीनों खुल्लमखुल्ला बड़े धैर्य के साथ प्रेम भरी बातें कर रहे थे. प्रेम का नाता जोड़ना चाहते थे। असम्भव को सम्भव बना रहा था, मद्रास का यह कला जगत ! मुत्तुकुमरन् को लगा कि माना सचमुच बहुत आगे बढ़ गया है। पर उसके अनुकूल अपने को ढालने की वह जुर्रत नहीं कर पा रहा था। उसे सब कुछ सपना-सा-लगा।

साढ़े तीन बजे वह, गोपाल और माधवी तीनों बाहर बगीचे में आये । वहाँ चाय-पार्टी के लिए भेजें और कुर्सियाँ लगी थीं । मेजों पर सफेद मेजपोश बिछ थे। उनपर फूलदान और गिलास कलापूर्ण ढंग से बड़े करीने से रखे हुए थे।

एक-एक कर लोग आने लगे । गोपाल ने मुत्तुकुमरन को उनसे परिचय कराया । माधवी मुत्तुकुमरन् के इर्द-गिर्द हँसती-मुस्कराती खड़ी रही । महिला- मेहमान आती तो वह उन्हें लिवा लाती और मुत्तुकुमरन् से परिचय कराती थी। पार्टी में आये हुए एक संवाद-लेखक ने मुत्तुकुमरन को नीचा दिखाने के लहजे में पूछा, "यही आपका पहला नाटक है या इसके पहले भी कुछ लिखा है ?"

मुत्तुकुमरन् ने उसकी अनसुनी कर चुप्पी साधी । पर उसने बड़ी बेपरवाही से अपना वही सवाल दुहराया।

मुत्तू कुमरन ने उसे टोकने के विचार से पूछा, "आपने अपना क्या नाम 1 - - बताया ? .

"दीवाना !"

"अब तक कितने फिल्मों के लिए आपने संवाद लिखा है ?"

'चालीसेक !"

"शायद इसीलिए जनाब यह सवाल कर रहे हैं !"

मुत्तुकुमरन् की बात से वह सकपका गया। उसके बाद वह मुत्तुकुमरन् के सवालों का डरते-डरते वैसे ही जवाब देने लगा, जैसे शिक्षक के सामने छात्र । यह देखकर माधवी पुलकित हो रही थी।