आयी और मोह-पाश में बंध गयी !"
"अरे, यह बात है ! इसका मुझे पहले ही पता होता तो तुम्हें अच्छी तरह टोह लेता। इतनी हिम्मत है तुम्हारी?"
"हाँ, क्यों नहीं ! आप जैसे हिम्मतवरों को पाने के लिए थोड़ी-बहुत हिम्मत से काम लेना ही पड़ता है !"
"अच्छा, छोड़ो उन बातों को । लड़का तो एक ही पत्तल लाया है । अब तुम कैसे खाओगी ? एक और पत्ता लाने को कहूँ या इसी टिफ़िन कैरियर में ही जा लोगी?"
"मेरे खयाल में आपने एक ही पत्ता लाने को कहा होगा!"
"नहीं-नहीं ! नाहक मुझपर दोष न थोपो।"
"क्या किया जाए ? इसी पत्ते पर खा लूंगी। सुबह कॉफ़ी पिलाते हुए भी आपने यही किया था। दूसरों को गुलाम बनाकर ही तो आपका अहम् तुष्ट होता "ऐसी बात न कहो माधवी ! मैंने तुम्हें अपने हृदय में सौन्दर्य की रानी बना- कर बैठाया है। तुम अपने को गुलाम बताती हो । तुम्हीं कहो, दासी कहीं रानी बन सकती है ?"
"आपने मुझे रानी का पद दिया है। इसीसे प्रमाणित होता है कि दासी भी रानी बन सकती है।"
बातें करते हुए माधवी ने बड़े प्रेम से उसे खिलाया और उसके खाने के बाद, उसी पत्ते पर स्वयं भी खाया। माधवी की प्रेमभरी श्रद्धा के सामने मुत्तुकुमरन् का अहंकार ढहता-सा लगा। माधवी महान् हो गयी और मुत्तुकुमरन् का जी छोटा।
खाना पूरा होने पर, छोकरा नायर बरतन ले गया। माधवी टाइप करने बैठी।
"इन उँगलियों से तुम वीणा के तारों पर कोई रसीला राग छेड़ती रहती तो मैं सुनता ही रहता । तुम्हारी ये कोमल उँगलियाँ जो विशेष कर वीणा-वादन के लिए बनी-सी मालूम होती हैं, टाइप के अक्षरों पर दौड़ते देखकर, इस मशीन के सौभाग्य को सराहने का मन होता है, माधवी !"
"पता नहीं, आप क्या चाहते हैं ? मेरी तारीफ़ करते हैं या खिल्ली उड़ाना चाहते हैं ? आप यही कहना चाहते हैं न कि मेरा वीणा-वादन टंकन जैसा होगा ! टाइप करने की तरह वीणा बजाऊँ तो वीणा के तार टूट जाएँगे । वीणावादन की तरह टाइप करूं तो अक्षर काग़ज पर पड़ेंगे ही नहीं !"
"तुम्हें तो दोनों काम अच्छे आते हैं !" मुत्तुकुमरन् ने कहा। मुत्तुकुमरन् के मन में यह इच्छा हुई कि शाम को माधवी को साथ लेकर