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यह गली बिकाऊ नहीं/41
 

छोटी कार ले जाओ!"

"उसकी कार अगर तुम्हारे द्वार पर खड़ी हो तो हो सकता है कि उसका 'स्टेटस' गिर जाय !"

"कुछ नहीं होगा !" कहकर माधवी ने नायर को फोन पर बुलाया और मलयालम में कुछ बोली।

थोड़ी देर में आउट हाउस के द्वार पर एक छोटी 'फ़ियट' कार आ खड़ी हुई। चलते हुए माधवी से मुत्तुकुमरन ने पूछा, "केरल में तुम्हारा कौन-सा गाँव है।"

"मावेलीकर!"

कार पर जाते हुए माधवी ने पहले अपने घर जाने को कहा, ताकि माँ को समुद्र-तट पर जाने की सूचना दे दी जाय।

जन्म से मलयाली होने पर भी माधवी की तमिळ में कोई फ़र्क नज़र नहीं आया। टाइप भी वह अच्छा कर लेती थी। तमिळ को मलयालम या तेलुगु की तरह बोलनेवाली कुछेक अभिनेत्रियों को मुत्तुकुम रन् स्वयं जानता था। माधवी तो हर बात में अपवाद थी । यह कैसे ? मुत्तुकुमरन् को आश्चर्य हो रहा था ।



छह
 

एक बड़े बँगले के बगीचे में दाहिने छोर पर, जो 'आउट हाउस' था, माधवी मुत्तुकुमरन् को उसमें ले गयी। घर की बैठक, दालान, रसोई. घर-सब-के-सब बड़े सुरुचिपूर्ण ढंग से सजे थे। बैठक के एक कोने में टेलिफोन रखा हुआ था । घर में माधवी की मां और नौकरानी के सिवा और कोई नहीं था। माधवी ने माँ का मुत्तुकुमरन् से परिचय कराया। माधवी की माँ अधेड़ उम्र की थीं । उनके कानों में मलयाली बालियाँ डोल रही थीं। वह ज़रीदार किनारे वाली धोती-बालरामपुरम नेरियल मुंडु-पहने हुई थीं। बहुत मना करने पर भी कॉफी पिलाये बगैर उन्होंने उन्हें नहीं छोड़ा । मुत्तुकुमरन्' ने तो यहाँ तक कहा था कि हम तो रात का खाना यहीं खाना चाहते हैं ! आप तो कॉफी पिलाकर छुटकारा पाना चाहती हैं ।

चक्कै (कटल), वरुवल् (चिप्स) के साथ कॉफ़ी पिलाकर 'बीच भेजते हुए उसने ताकीद भी की थी कि साढ़े आठ बजे तक भोजन करने आ जाना।

माधवी ने जाते हुए कहा, "एलियंड्स बीच पर भीड़ कम होगी। वहीं जायेंगे।"

पर मुत्तुकुमरन् ने ठीक उसका उल्टा विचार प्रकट किया- "भीड़ से डरने और भीड़ को देखकर भागने के लिए हम दोनों में कोई गोपाल