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यह गली बिकाऊ नहीं/44
 


हुए खड़े थे 1 यह किसी चल-चिन का 'स्टिल' था। उसपर मुत्तुकुमरन् की नजर को बार-बार जाने देखकर माधवी असमंजस में पड़ गयी । वह नाहक किसी सन्देह में नहीं पड़ जाए-इस विचार से माधवी ने कहा, "मणप्पेण (वधू) नामक एक सामाजिक फ़िल्म में मैंने नायिका की सहेली की भूमिका की थी। यह उसी का एक दृश्य है, जिसमें गोपाल जी मुझसे मिलकर बात करते हैं।"

"अच्छा ! उस दिन इन्टरव्यू के दौरान मैंने यह समझा था कि तुममें और गोपाल में कोई परिचय नहीं है। सबकी तरह तुम भी नयी-नयी आयी हो ! तुम तो बताती रही कि तुम्हारे मद्रास आने पर, उनकी मदद से ही तुम तरक्की कर सकी।"

"नाटक-मंडली की अभिनेत्रियों की गोष्ठी में यद्यपि उन्होंने पहले ही मुझे चुनने का निर्णय कर लिया था, फिर भी नियमानुसार मुझे भी ‘इण्टरव्यू' में सम्मिलित होने को कहा था। इसलिए मैं भी उस इन्टरव्यू में अपरिचित-सी बन- कर शामिल हुई थी!"

"लेकिन. सहसा मेरे पास आकर, बहुत दिनों की परिचित की तरह बड़े स्वाभाविक ढंग से बातें करती रही !"

उसने उत्तर बातों से नहीं, मुस्कुराहट से दिया।

भोजन बड़ा ही स्वादिष्ट और सुगंधित बना था। पुलिचेरि, एरिचेरि, बक्कै प्रथमन् (कटहल से बनी खीर), अवियल् आदि विशिष्ट मलयाली व्यंजन परोसे गये। बीच-बीच में माधवी कुछ कहती तो उत्तर देने के लिए मुत्तुकुमरन् सिर उठाता। सिर उठाते ही वह चिन उसकी आँखों से जा टकराता। माधवी ने इसे

ताड़ लिया।

उस एक चित्र के सिवा, बाकी सारे चित्र देवी-देवताओं के थे। गुरुवायूरप्पन, पळनि मुरुगन, वेंकटाचलपति आदि के चिन्न थे। उनमें यही एक चित्र उसकी आँखों में खटकता था। माधवी ने उसके दो-तीन मिनट पहले ही भोजन समाप्त कर लिया । इसलिए उसकी अनुमति से हाथ धोने उठ गयी।

उसके बाद हाथ धोकर आनेवाले मुत्तुकुमरन को उस अथिति-कक्ष में एक आश्चर्य देखने को मिला । वह चित्र, जिसमें गोपाल और माधवी हँसते हुए खड़े थे, वहाँ नजर नहीं आया । भुत्तुकुमरन ने अनुमान से जान लिया कि माधवी ने चित्र को वहाँ से हटा दिया है। वह बिना कुछ बोले, मन-ही-मन खुश थी और मुस्कुराती खड़ी थी। मुत्तुकुमरन ने पूछा, "उस चिन को वहाँ से क्यों दिया?"

"लगा कि आपको पसन्द नहीं है। इसलिए।"

"मेरी हर पसन्द और नापसन्द का ख्याल रखना कहाँ तक संभव है ?"

"संभव-असंभव की बात छोड़िए। मैं तो आपको नापसन्द आनेवाली चीज़ों से भरसक दूर रखना. वाहती हूँ ।"वह फलों और पान-सुपारी से भरी तश्तरियाँ उसके आगे रखती हुई बोली । उसे लगा कि माधवी के अकूत प्रेम को संजोने के