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यह गली बिकाऊ नहीं/45
 


लिए उसका दिल बड़ा छोटा है । उसने देखा कि माधवी घड़ी-घड़ी उससे अकारण ही शर्मिन्दा हो रही है। वह चलने लगा तो माधवी उसे मावळम तक पहुँचाने को तैयार हो गयी । पर उसने मना करते हुए कहा, "तुम आओगी तो फिर गोपाल की 'लौटना होगा । ड्राइबर को नाहत दुबारा परेशान होना पड़ेगा !"

"आपको पहुँचाकर वापस आने से दिल को तसल्ली होगी !"

"रात के वक्त तुम बेकार तकलीफ़ उठाओगी। सवेरे तो हम मिलने ही वाले हैं।"

"अच्छा तो फिर आपकी मरजी, मैं नहीं आती!"

मुत्तुकूमरन् ने माधवी की माँ से विदा ली। वह तो स्नेहमयी दृष्टि से देख रही थीं।

माधवी ने द्वार तक आकर विदा किया। रात के साढ़े नौ बज रहे थे । कार के रवाना होने के पहले, दरवाजे की ओट में माधवी मुत्तकुमरम् के कानों में फुसफुसायी-

"हमारे समुद्र-तट की सैर की बात वहाँ किसीसे मत कहियेगा।"

जानते हुए भी अनजान बनकर, मुत्तुकुमरन् ने पूछा, "वहाँ-माने कहाँ ?"

उसके जवाब देने के पहले कार चल पड़ी।

मुत्तुकुमरन् को माधवी का उस तरह कहना पसन्द नहीं आया । गोपाल को मालूम हो भी गया तो क्या हो जायेगा? माधवी गोपाल से इतना क्यों डरती है ? इस सवाल का जवाब उसी के मन ने दिया, 'बिना किसी कारण के, माधवी इतनी सावधानी नहीं बरतती। हाँ, गोपाल उसके जीवन का मार्ग-दर्शक रहा है। उसके प्रति आदर भाव और भय को गलत नहीं कहा जा सकता।'

तर्क-वितर्क के बावजूद, उसके मन को इसका समाधान नहीं मिला कि चलते समय, कानों में आकर इतनी घबराहट के साथ उन शब्दों को कहने की क्या जरूरत थी?

जब वह बँगले पर पहुंचा, तब गोपाल घर में नहीं था । मालूम हुआ कि वह अल्जीरिया से आयी हुई किसी कला-मंडली का नृत्य देखने अण्णामलै मन्ड्रम गया हुआ है। मुत्तुकुमरन् को इतनी जल्दी नींद भी नहीं आयी। उसने सोचा कि कम-से-कम एक घंटा लिखकर सोने जाये।

लिखना शुरू करने से पहले, उसने जो कुछ लिख रखा था, एक बार पड़ा। माधवी उसकी पांडुलिपि की टंकन-लिपि तैयार कर छोड़ गयी थी। इसलिए उसे पढ़ने में बड़ी सहूलियत हुई। उसको शुरू से आदत थी कि पहले के लिखे हुए अंशों को बार-बार पढ़े और तब आगे के अंश लिखे।

वह लिखते हुए यह सोचता हुआ लिख रहा था कि अण्णामल मन्ड्रम से लौटने पर गोपाल उसे फोन पर बुला भी सकता है। लेकिन लिखकर सोने जाने तक पता