पृष्ठ:Yeh Gali Bikau Nahin-Hindi.pdf/५५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
54/यह गली बिकाऊ नहीं
 

गोपाल और जिल-जिल अट्टहास करते हुए खा रहे थे । मुत्तुकुमरन् गुमसुम बैठा खा रहा था । उसका मौन देख कर जिल-जिल ने गोपाल से पूछा, "मुत्तुकुमरन् साहब, हमारी बातों में शामिल क्यों नहीं होते ?"

"वह शायद किसी कल्पना-लोक में उड़ रहे होंगे !"-गोपाल ने कहा। उन दोनों को अपने बारे में बोलते हुए देखकर भी मुत्तुकुमरन् ने मुंह नहीं खोला।

गोपाल ने हाथ धोने के लिए 'वाश बेसिन' तक हो आने की जरूरत को परे रखकर जैसे सुस्ताते हुए यह आदेश दिया कि एक मटका पानी लाओ ! मुत्तुकुमरन् ने समझा कि नायर छोकरा पानी लायेगा। पर यह क्या ? लाल रंग के एक प्लास्टिक बरतन में हाथ धोने के लिए स्वयं माधवी पानी ले आयी थी। वह डाइनिंग टेबुल के पास आकर हाथ में पानी लिये खड़ी हुई और गोपाल वहीं बैठे- बैठे बरतन में ही हाथ धोने लगा । मुत्तुकुमरन का मन क्षोभ से भर गया।

यह खातिरदारी अपने तक सीमित न रखकर गोपाल ने जिल-जिल और मुत्तुकुमरन् से कहा, "आप लोग भी इसी तरह धो डालिये।" जिल-जिल ने इनकार कर दिया। मुत्तुकुमरन् यह कहते हुए उठा कि मुझमें वाश-वेसिन तक जाने की शक्ति अब भी है !

गोपाल के अभिमान को देखकर मुत्तुकुमरन् क्रोध और क्षोभ से भर गया था। भोजन के थोड़ी देर बाद, गोपाल और जिल-जिल चल। । जाते हुए जिल-जिल कहता हुआ गया, "एक दिन आपसे मुलाक़ात के लिए फिर आऊँगा !"

मुत्तुकुमरन् ने मुंह खोलकर कुछ नहीं कहा । सिर हिलाकर विदा कर दिया। फिर आउट हाउस में जाकर अपने काम में डूब जाना चाहा। माधवी अभी नहीं आयी थी। उसे लगा कि भोजन करके आने में कोई आधा घण्टा लगेगा। उसकी प्रतीक्षा में मुत्तुकुमरन् लिखने का कोई काम कर नहीं पाया ।"

यह सोचते-सोचते कि माधवी में यह दास-बुद्धि कहाँ से आयी ? उसकी सहनशक्ति जवाब दे गयी । माधवी तो उसके लिए प्राणों से भी प्यारी थी! गुलामों की तरह वह दूसरों की सेवा करे, यह उसे गवारा नहीं हुआ।

गोपाल को तो चाहिए था कि माधवी को साथ बिठाकर खिलाये ! पर उसने यह क्या किया ? उसने उसे अपना हुक्म बजाने को बाध्य किया था ! उसकी इस महत्त्वाकांक्षा से उसे चिढ़ हो गयी । उसने सपने में भी नहीं सोचा था कि गोपाल इतना क्रूर और निर्दयी निकलेगा। वह इन विचारों में लगा हुआ था कि माधवी एक हाथ में चाँदी की तश्तरी में पान-सुपारी और दूसरे में फलों की तश्तरी लिये हुए आयो।

"आपके लिए पान-सुपारी लाने अन्दर गयी थी! तब तक आप चल पड़े थे !" "जूठे बरतन उठाने वाले हाथ पान-सुपारी लायें तो मैं कैसे ग्रहण करूँ?"