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यह गली बिकाऊ नहीं/57
 


कश्मीर जाने के बारहवें दिन गोपाल के पास से मुत्तुकुमरन् के नाम पत्र आया, जिसमें उसने पूछा था कि नाटक की प्रगति कहाँ तक हुई है ? उस दिन मुत्तुकुमरन् नाटक के अंतिम चरण में था । इस दृश्य में एक सामूहिक गान का आयोजन था । दूसरे दिन सवेरे, जहाँ तक मुत्तुकुमरन् का सम्बन्ध है, नाटक पूरा तैयार हो गया था। सिर्फ माधवी का टाइप करना भर बाकी रह गया था । वह भी इतना ही कि सबेरे बैठती तो दोपहर को पूरा हो जाता।

टाइप करने के लिए जब माधवी आयी, तब मुत्तुकुमरन् बाल बनवाने के लिए सैलून जाने के उपक्रम में था। मद्रास आने के एक महीने पहले से ही उसके बाल बढ़े हुए थे। इसलिए उस दिन उस काम से निवृत्त होने को उसने ठान लिया था। जाते हुए वह माधवी से कह गया कि मेरे वापस आने तक तुम्हारे लिए टाइप करने का काम पड़ा है । तुम्हारे टाइप करने के पहले ही शायद मैं आ जाऊँगा।

गोपाल के ड्राइवर ने मुत्तुकुमरन् को पांडि बाजार के एक आधुनिक वातानु- कूलित सैलून के सामने उतारा । अन्दर जाने पर, मुत्तुकुमरन् को थोड़ी देर के लिए बाहरी बैठक में इन्तजार करना पड़ा। वहाँ तमिळ के दैनिक, साप्ताहिक, मासिक और फ़िल्मी दुनिया की पत्र-पत्रिकाओं के अंबार लगे थे। एक छोटा-मोटा वाचनालय ही था।

ऊपर, दीवार के चारों ओर. युवतियों के मनमोहक 'बाथरूम पोज' वाले कैलेंडर लगे थे । न नहाते हुए भी बहुत ही थोड़े लिबास में कुछ लड़कियों की तस्वीरें ऐसी बनी थीं कि देखकर नहानेवालियाँ भी लजा जायें । कैलेंडर बनाने- वालों का शायद यह विचार रहा हो कि सारी दुनिया की लड़कियों को या तो नहाने के सिवा कोई काम नहीं या नहाना मात्र ही सार्वभौम स्त्री-संस्कृति है।

उन चित्रों को देखते-देखते : मुत्तुकुमरन् ऊब गया था । मेज़ पर पड़ी रंगीन चित्रों वाली एक साप्ताहिक पत्रिका उठाकर उलटने-पुलटने लगा। बाहर के कवर- चित्र से लेकर धारावाही उपन्यास और लंधुकथाओं के चित्रों में भी स्त्रियाँ नहा ही रही थीं। अच्छा हुआ कि उसका धैर्य जवाब दे दे-इसके पहले अंदर से बुलावा आ गया। अंदर जाकरं कुरसी पर बैठा तो देखा कि अगल बगल और आमने-सामने उसके चेहरे के प्रतिबिंब दसेक आईनों में दिखायी देने लगे। अपने ही प्रतिबिंबों पर गर्व करने का जी हो रहा था । दो आईनों के बीच, गोपाल की एक तस्वीर सुन्दर 'फम' में सजी टंगी हुई थी। नाई का उस्तरा जब सिर पर चल रहा था, तब उसकी आँखों में मीठी नींद भरने लगी। अधमुंदी-अधखुली आँखों से गोपाल का चित्र देखते हुए उसके मन में गोपाल के बारे में एक-एक कर विचार : भी उभरते चले गये।

'गोपाल जी से मेरा बहुत दिनों का परिचय' है । नाम के वास्ते मुझे 'इन्टरव्यू