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एक

मद्रास आने पर उसके जीवन में परिवर्तन अवश्यंभावी हो गया था। कंदस्वामी वाद्दार की 'गानामृत नटन विनोद नाटक सभा' के लिए गीत और संवाद लिखते हुए या समय-समय पर मंच पर पात्राभिनय करते हुए उसके जीवन में न तो इतनी गति थी और न ही प्रकाश। मदुरै और मद्रास के जीवन में जो इतना उतार-चढ़ाव है, इसका क्या कारण है? कारण की तह में पहुँचने पर ऐसा लगता है कि अधिक प्रकाश वाले स्थान में छोटा जीवन भी बृहदाकार दीखता है और कम प्रकाश वाले स्थान में बड़ा जीवन भी क्षुद्र और धुँधला हो जाता है।

क्या प्रकाश मात्र जीवन है?––इस प्रश्न का कोई प्रयोजन नहीं है। मद्रास में सूर्य का प्रकाश मात्र जीवन-यापन के लिए पर्याप्त नहीं है। मनुष्य को स्वयं प्रकाश फैलाना पड़ता है और अपने चारों ओर प्रकाश-पुंज बुनना पड़ता है। अपने कृत्रिम प्रकाश के सामने सूर्य के प्रकाश को फीका भी बनाना पड़ता है।

मदुरै कंदस्वामी वाधार के गानामृत नटन विनोद नाटक सभा में रहते हुए उसका पूरा नाम मुत्तु कुमार स्वामी पावलर था। नाटक सभा के टूटने पर अकाल-पीड़ितों की तरह मद्रास के कल, जगत् की शरण लेनी पड़ी तो उसे अपने जीवन की सुविधाओं में ही नहीं, अपने नाम में भी काट-छाँट करनी पड़ी। सचमुच, अपने बड़े नाम को काटकर छोटा करना पड़ा।

'मुत्तुकुमरन्'––वह संक्षिप्त नाम उसे और उसके साथियों को उपयुक्त लगा। चेत्तूर और शिवगिरि जैसे जमींदारों की शरण में जीने वाले उसके पूर्वजों को अपने 'अकट विकट चक्र चंड प्रचंड आदि केशव पावलर' जैसे लंबे नामों को छोड़ने या छोटा करने में, हो सकता है कि संकोच हुआ हो। लेकिन वह इस सदी में उपस्थित था इसलिए वैसा नहीं कर सका। बाय्स कंपनी के बंद होने पर दस महीने तक पाठ्य पुस्तके तैयार करने वाली एक कंपनी में प्रूफ़ रीडर का काम करता रहा। उससे तंग आकर नाटक प्रसूत सिने-संसार में प्रवेश पाने के विचार से मद्रास को चल पड़ा।

मदुरै से मद्रास को रवाना होते समय उसके साथ कुछ सुविधाएँ भी थीं और कुछ असुविधाएँ भी। असुविधाएँ निम्न प्रकार थीं––

––मद्रास के लिए वह नया था। चापलूसी करने की आदत नहीं थी। उसके