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यह गली बिकाऊ नहीं/63
 


"प्रिय मुत्तुकुमरन्,

माधत्री के सामने तुम्हारा मेरे साथ बेपरवाही बरतना, खिल्ली उड़ाना या फिर डाँट-फटकार आदि जैसी बातें नहीं सोहतीं । मेरे हुक्म पर चलनेवाले नौकरों के सामने तुम्हारे इस तरह पेश आने को मैं स्वीकार नहीं कर सकता। तुम्हारे मुंह के सामने ऐसा कहने को संकोच हो रहा था। इसीलिए लिखकर भेजना पड़ रहा है । तुम समझो तो ठीक ! नाटक तुम्हारा लिखा हुआ है तो उसका मंचन करने- वाला और भूमिका निभानेवाला मैं हूँ। आशा है, यह याद रखोगे ।

तुम्हारा'
 
-गोपाल
 

मुत्तुकुमरन ने उस पत्र को मरोड़कर कोने में फेंक दिया। धीरे-धीरे गोपाल के असली रूप का उसे पता चलने लगा। उसके सामने बुजदिल बनकर और दुभ दवाकर चलनेवाला गोपाल उसके पीठ-पीछे क्या-क्या सोचता है ? यह पत्न उसी का खुलासा करता-सा लगा। गोपाल पर इतना गुस्सा चढ़ आया कि उसे खाने की इच्छा ही नहीं हो रही थी। फिर भी, किसी तरह खाने की रस्म पूरी कर बिस्तर पर जा लेटा । अब उसे मालूम हो गया कि माधवी का उससे मिलना-जुलना और नेह बढ़ाना गोपाल को.एक आँख भी नहीं भाता ।

रात को बड़ो देर तक उसे नींद नहीं आयी तो अपने बारे में, माधवी के बारे में, गोपाल के बारे में और मंचित होने वाले अपने नये नाटक के बारे में सोचता हुआ बिस्तर में करवटें लेता रहा।

अब वह यह देखना चाहता था कि कल नियत समय पर गोपाल नाटक के रिहर्सल के लिए आता है कि नहीं ? अगर उसके कहे हुए वक्त पर गोपाल नहीं आये तो? उसके दिल में प्रतिहिंसा की यह भावना उठी कि बिना कहे-सुने अपने नाटक की प्रतियों के साथ उस घर से निकल जाना चाहिए।

लेकिन दूसरे दिन सवेरे ऐसा कुछ नहीं हुआ। उसने रिहर्सल के लिए जो समय बताया था, उसके आधे घण्टे पहले ही गोपाल आउट हाउस में हाजिर हो गया नियत समय पर आ गयी थी।

गोपाल बात को तूल दिये बगैर मान गया था-इस बात से मुत्तुकुमरन् को आश्चर्य हो रहा था। पर उसने उसे प्रकट होने नहीं दिया और स्वाभाविक ढंग से काम शुरू कर दिया।

नाटक कंपनियों में जैसा कि प्रचलन है, सारी औपचारिकताएं पूरी की गयीं। पूजा के बाद, नाटक का रिहर्सल शुरू करने के पहले कथा और कथा-पात्रों के विषय में एक खाका खींचा गया। फिर पात्रों की सूची देकर गोपाल से कहा कि उनके सामने अभिनेताओं के नाम भर दे । यथा-