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60/यह गली बिकाऊ नहीं
 

आने और 'झूमने पर जोर दिया, मानो कुत्ते की दुम हो ।

"अरे भाई ! लड़ाई का मैदान है यहाँ घूमने के लिए कोई बाग-बगीचा नहीं!" मुत्तुकुमरन् के हास-परिहास को उसने क्या समझा ? खाक समझा !

मुत्तुकमरन् को सिर पीटने के सिवा कोई चारा नजर नहीं आया। उनमें अधिकांश साफ़ संवाद बोलने, भाव-प्रदर्शन करने और भूमिका समझने में अयोग्य ही सिद्ध हुए। मुत्तुकुमरन को अब यह समझते देर न लगी कि मद्रास में मजदूरों की तरह ही नाटकों के उन पानों की भूमिका करने के लिए आदमी मिल रहे हैं।

माधवी ने सबको कागज़-पेन्सिल देकर अपना-अपना संवाद लिख लेने को कहा । उनमें से कुछेक तो बिना गलती के लिखना तक नहीं जानते थे ।

"हमारी वायस् कंपनी में गरीबी की भूख सताती थी। लेकिन कला के विषय में न गरीवी थी और न ज्ञान-शून्यता । यहाँ की हालत को देखते हुए लगता है, वह जमाना कहीं अच्छा था।" माधवी को अन्दर ले जाकर मुत्तुकुमरन ने अपनी मनो- व्यथा सुनायी।

"क्या करें? यहाँ की हालत ऐसी ही है । कष्ट भोगने वाले ही इस तरह काम की तलाश में आते हैं । कला की साधना के मुकाबिले इस क्षेत्र को आने वाले जीविका का साधन मानकर, ही अधिक हैं " माधवी ने कहा।

रिहर्सल के समय, मुत्तुकुमरन् ने उन अभिनेताओं में एक और तरह के संक्रामक रोग को फैले हुए पाया ! फ़िल्मी क्षेत्र के किसी नामवर अभिनेता की आवाज़, बोलने के तौर-तरीके, भाव-प्रदर्शन आदि की नकल करना ही उनका ध्येय और सामर्थ्य- दर्शन था। कला और कला के भविष्य की चिंता तो उनमें थी ही नहीं।

... मुत्तु कुमरन ने उन्हें अभ्यास कराने में दो-तीन घण्टे लगाया । हर एक अभि- नेता में उसने इस विचार को सिर उठाये हुए पाया कि मंच पर एक मिनट भी सिर धुसाने का मौका मिले तो उस मौके पर कथा-नायक से भी अपने को प्रमुख मान ले और प्रभाव पैदा कर चला जाय । कला की किसी भी विधा में आत्म-वेदना नहीं के बराबर थी और केवल स्वयं को प्रदर्शित करने की इच्छा तीव्रतम थी। हर उप- अभिनेता यही सपना देखता था कि हम भी फ़लाने मशहूर अभिनेता की भाँति पैसा कमायें, नाम-यश पायें; कार-बँगले खरीदें और सुख भोगें । मेहनत से काम करने और सामर्थ्य बढ़ाने का उत्साह किसी में नहीं दीखा । मुत्तुकुमरन् जानता था कि कला के क्षेत्र के लिए यह हानिकारक है । पर वह कर ही क्या सकता था ?

दूसरे दिन भी रिहर्सल के लिए आने को कहकर उसने उन्हें विदा किया तो शाम के छः बज गये थे । पहले जो 'वैन उन्हें भरकर लायी थी, अब उन्हें भरकर बँगले से बाहर ले गयी। जाती हुई 'वैत' को देखते हुए मुत्तुकुमरन्' ने माधवी से कहा, "लगता है कि हरेक अभिनेता ने अपने दस-पन्द्रह आदमियों को काम दिलाने के लिए ऐसी ही कोई नाटक-मंडली खोल रखी है !"