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यह गली बिकाऊ नहीं/67
 


"बात सही है ! लेकिन जो लोग कला की साधना के उद्देश्य से यह कार्य शुरू करते हैं, वे भी धीरे-धीरे इसी चक्कर में पड़ जाते हैं । कला का ध्यान छू मंतर हो जाता है !"

"उप-अभिनेताओं को मासिक वेतन दिया जाता है या दैनिक मजदुरी ? यहाँ कौन-सा रिवाज चलता है ?"

"अगर अपने आदमी कोई काम न भी करें तो वे मासिक वेतन दे देते हैं। दूसरे हों तो सिर्फ़ नाटक में भाग लेने के दिन के ही पैसे देते हैं। दस रुपये से लेकर पचास रुपये तक । आदमी, हैसियत और घनिष्ठता के अनुसार इनमें फर्क पड़ता है !"

"नाटक ज्यादातर कैसे चलते हैं ? अकसर कौन देखने आते हैं ? पैसा वसूल कैसे होता है ?"

"मद्रास में ऐसी सभाओं को छोड़कर दूसरा चारा नहीं है । हर समुदाय की कोई-न-कोई सभा होती है। मद्रास के बाहर भी, बम्बई, कलकत्ता, दिल्ली जैसे शहरों में जहाँ हमारे लोग हैं, वहाँ ये मण्डलियाँ जाती हैं। इनके अलावा नगर- पालिका की प्रदर्शनियों, मन्दिरों के मेलों और राजनीतिक दलों के अधिवेशनों में भी तरह-तरह के नाटक होते हैं । दूसरे शहरों में नाटक मंडली और सारी सज्जा- सामग्री को ले जाना होता है। यह तो ऐसा कठिन काम है कि जान ही निकल जाती है !"

"इतनी सारी सभाओं, प्रदर्शनियों और रंगमंचों के बढ़ने पर भी लगता है कि इस कला को समर्पित कलाकारों में उस जमाने की तरह श्रद्धा या आत्मवेदना नहीं है । पेट की भूख तो है। किन्तु कला की भूख नहीं है। अगर है तो उसको पेट की भूख खा जाती है !"

"आप बिलकुल ठीक कह रहे हैं।' माधवी ने लम्बी साँस खींची । थोड़ी देर बाद बात जारी रखते हुए उसने कहा, "कलकत्ता में ऐसे थियेटर हैं, जहाँ रोज़ नाटक चलते हैं । वहाँ के लोगों में नाटक के प्रति श्रद्धा है और कला के प्रति आत्म- वेदना भी । मैं एक बार गोपालजी के साथ कलकत्ता गयी थी, तब हमने 'भूख' नामक एक बांग्ला नाटक देखा था । बड़ा अच्छा था । संवाद बहुत कम थे लेकिन हाव-भाव और भंगिमाएँ ही ज्यादा थीं। नाटक इतना नपा-तुला था कि क्या कहें ?"

“गोपाल के साथ तुम कलकत्ता क्यों गयी थी?" यह सवाल मुत्तुकुमरन् के होंठों तक आ गया था। पर उसने न जाने क्या सोचकर उसे निगल लिया ! : थोड़ी देर तक दोनों में कोई बात-चीत नहीं हुई और मौन छाया रहा। गोपाल के साथ अपने कलकत्ता हो आने की बात कहने की क्या जरूरत थी?-- माधवी अपनी भूल को महसूस कर, कुछ क्षणों के लिए सिर झुकाये चुप बैठी रही। मानो कोई कलाकार अनजाने ही बाजे में बेसुरा तार छेड़कर शमिन्दा हो । श्रोता