व्यापारियों में से थे। उनका एक पैशा यह भी था कि भारत की नाटक-मंडलियों को अनुबंध द्वारा मलाया ले जाते और जगह-जगह नाटक का मंचन कर पैसे बनाते और बनवाते । गोपाल नाटक-मंडली के प्रथम नाटक 'प्रेम-एक नर्तकी का' जिसका प्रथम मंचन मंत्री महोदय की अध्यक्षता में होना था-उसी दिन पिनांग के अब्दुल्ला को नाटक में बुलाने का भी निर्णय हुआ । यह आशा की गयी कि नाटक देखने के बाद वह गोपाल और गोपाल की नाटक-मंडली को इस नाटक के मंचन हेतु कम-से-कम एक महीने के लिए मलाया-सिंगारपुर में अनुबंध पर बुलायेंगे। अतः नाटक-मंडलीवालों की यह कोशिश रही कि नाटक पूरी तरह सफल हो ताकि अब्दुल्ला भी इस अनुबंध के लिए बाध्य हो ।
नाटक नाटक के लिए सफल हो या न हो, दूसरे कई कारणों के लिए सफल हो-गोपाल का यह प्रयास मुत्तुकुमरन को नहीं भाया।
मंचन के प्रथम दिन 'जिल जिल' संपादक कनियळकु मुत्तुकुमरन् से भेंट करने के लिए आ गया । इस समय भेंट-वार्ता छपे तो बड़ा अच्छा रहेगा-गोपाल की योजना का इसके पीछे हाथ था। लेकिन मुत्तुकुमरन् ने जिल जिल पर ऐसी फबती कसी कि वह सकपका गया। उसके हर सवाल का जवाब टेढ़ा-मेढ़ा ही मिला।
उसके प्रति मुत्तुकुमरन का कोई आदर-भाव नहीं रहा ।
"मैंने कितने ही बड़े-बड़े लोगों से भेंट की है। त्यागराज भागवतर, पि० यु० चिन्नप्पा, टी० आर० राजकुमारी-सबको मैं अच्छी तरह जानता हूँ।"
"लेकिन मैं उतना बड़ा आदमी नहीं !"
"हमारे 'जिल जिल' में आपकी एक भेंट-वार्ता छप जाए तो आप अपने आप बड़े हो जायेंगे !"
"तो कहिए कि बड़े आदमी बनाने का काम आप बहुत दिनों से कर रहे हैं।"
"हमारे जिल जिल की यह नियामत है !"
"हाँ, जिल जिल भी तो एक नियामत है !"
"अच्छा, छोड़िये उन बातों को ! अब हम काम की बात करेंगे !"
"हाँ-हाँ ! कहिए, आपको क्या चाहिए?"
"आपने कला के जगत में कब पदार्पण किया?"
"कला-जगत कहने का क्या मतलब है ?. पहले यह बताइये । बाद में मैं आपको जवाब दूंगा । मेरा जाना-माना जगत एक ही है। उसमें भूख-प्यास, अमीरी-गरीबी, तोष-रोष, सुख-दुख, शोक-संताप-सब सम्मिलित हैं । आप तो किसी दूसरी दुनिया की बात कर रहे हैं !"
"आप यह क्या कह रहे हैं ? कला की ही दुनिया में तो आप, मैं और गोपाल साहब रहते हैं !"