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यह गली बिकाऊ नहीं/73
 


"यह इच्छा मात्र है । इच्छा और प्रतिज्ञा अलग-अलग हैं । इसे प्रतिज्ञा कहना गलत है !"

"पत्रिका की भाषा में हम ऐसा ही कहते हैं !"

"पत्रिका की इस भाषा को भाड़ में झोंकिए !"

"गुस्सा मत कीजिये !"

"छि:-छि: ! यह कोई गुस्सा है ? मैं सचमुच गुस्सा करूँ तो थरथरा जायेंगे आप?"

"मेहरबानी करके मेरे अगले सवाल का, बिना गुस्सा किये जवाब दीजियेगा।

आपकी अगली योजना क्या है ?"

"वह तो मेरा भविष्य ही जाने ! मैं क्या जानूँ ?"

"आप भी खूब मजाकिया बातें करते हैं।"

"मजाकिया?"

"हाँ, हास्य की।"

"इसमें कौन-सा बड़ा हास्य हो गया?"

मुत्तुकुमरन् माधवी की ओर देखकर मुस्कराया । जिल जिल झुककर कुछ लिखने लगा।

“एक मिनट इधर, अंदर आइए !" माधवी ने मुत्तुकुमरन को आउट हाउस के बरामदे से अंदर बुलाया तो वह उसके साथ अंदर चला गया ।"

"इस आदमी के सामने ऐसी बातें क्यों की ?"

"कैसी बातें?"

"इनकी तरह कोई बहार आये तो शादी करने का विचार है !"

"तो कहो कि तुम्हारे ख़याल से मुझे यह कहना चाहिए कि शादी करूँ तो मैं 'इसी से शादी करूंगा । मेरी ग़लती माफ़ कर दो !"

"मेरे कहने का मतलब वह नहीं !"

"तो फिर क्या ?"

"उन्होंने यह लिख लिया है कि माधवी-जैसी मनोहर सुन्दरी मिले तो शादी करूंगा।' 'नाटककार मुत्तुकुमरन् की यह प्रतिज्ञा है । अब इसे गोपाल साहब पढ़ेंगे तो क्या समझेंगे?"

"तो फिर तुम्हारा छुटकारा नहीं होने का । तुम्हें गोपाल का डर लग रहा है ?"

"डर किस बात का? आप मेरी बात समझते नहीं !"

“समझता खूब हूँ ! शेरों से डरनेवाली हिरनियाँ मुझे पसन्द नहीं !"

"मुझे डरानेवाला शेर और कहीं नहीं, इधर है।" कहकर माधत्री ने मुस्कुराते हुए उसकी मीठी चुटकी ली। बदले में मुत्तुकुमरन् भी मुस्कुराया। पर उसे इस बात का पता था कि वह मन-ही-मन गोपाल से डर रही है। इसका फायदा उठाकर वह