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यह गली बिकाऊ नहीं/7
 


फ़ोन था। अपने कामों से निपटकर जब वह रिसेप्शन में आया, तब घड़ी ग्यारह बजा रही थी।

टेलिफ़ोन डाइरेक्टरी में उसने अभिनेता गोपाल का नंबर ढूँढ़ा। पर वह मिल ही नहीं रहा था। आखिर लाचार होकर रिसेप्शन में बैठे व्यक्ति से गोपाल का नंबर पूछा।

उसके तमिळ में पूछे गये प्रश्न का उन्होंने अंग्रेज़ी में उत्तर दिया। मद्रास में उसे यह एक अजीब तजुर्बा यह हुआ कि तमिळ में प्रश्न करने वाले अंग्रेज़ी में उत्तर पा रहे हैं और अंग्रेज़ी में प्रश्न करने वालों को तमिळ के सिवा दूसरी किसी भाषा में उत्तर देने वाले नहीं मिल रहे हैं। उनके उत्तर से उसे इतना ज्ञात हुआ कि गोपाल का नाम टेलिफ़ोन डाइरेक्टरी में 'लिस्ट' नहीं किया गया होगा। कुछ क्षणों के बाद टेलिफ़ोन पर ही पूछ-ताछ कर उन्होंने गोपाल का नंबर बताया। मद्रास में क़दम रखते-न-रखते मुत्तुकुमरन् ने यह महसूस किया कि हर पल उसे अपने को बदलना पड़ रहा है। उसे तो समय को अपने मुताबिक बदलने की आदत पड़ गयी थी। यहाँ तो अपने को समय के अनुसार बदलना पड़ रहा है। अपनी आदत से उबर पाना उसे ज़रा कठिन लग रहा था। उसने जिसका नाम लेकर नंबर पूछा था, उसके नाम ने रिसेप्शनिस्ट पर जादू-सा कर दिया और मुत्तुकुमरन् के प्रति भी तनिक आदर भाव दिखाने को बाध्य कर दिया।

फ़ोन पर अभिनेता गोपाल नहीं मिला। पर इतना ज्ञात हुआ कि वह किसी शूटिंग के लिए बंगलोर गया है। दोपहर को तीन बजे की हवाई उड़ान से लौट रहा है। मुत्तुकुमरन् की छुटपन की दोस्ती की बात अनमने ढंग से सुनने के बाद उस छोर से उत्तर आया कि साढ़े चार बजे आइये, मुलाकात हो सकती है।

उसी क्षण उसे उस उत्तर के अनुसार अपने को बदलना पड़ा। उस उत्तर को अपने अनुरूप बदले तो कैसे बदले? वह जाये तो कहाँ जाए? वर्षा भी रुकने का नाम नहीं ले रही थी। दोपहर के भोजन के बाद उसने अच्छी तरह सोने का निश्चय किया। रात की रेल-यात्रा में उसने जो नींद खोयी थी, उसे पुनः प्राप्त करने की तीव्र इच्छा हुई। लेकिन इस नये शहर में, नये कमरे में जल्दी से नींद आयेगी क्या? उसने बक्सा खोलकर किताबें निकालीं।

दो निघंटु, एक छंद शास्र, चार-पाँँच कविता की किताबें―ये ही उसके पेशे की पूँजी थीं। मृत्तुकुमरन् इधर किताब के पन्ने उलट रहा था कि उधर सामने के कमरे से एक युवती किवाड़ पर ताला लगाकर कहीं बाहर जाने को तैयार हो रही थी। मुत्तुकुमरन् ने उसके पृष्ठ भाग का सौंदर्य देखा तो ठगा-सा रह गया। पतली सुनहरी कमर, बनी-सँवरी पीठ, नीली साड़ी―सब एक से बढ़कर एक थीं।

"उमड़ घुमड़कर आयी बदरिया

कैंसी चमचम चमकी बिजुरिया!