पृष्ठ:Yeh Gali Bikau Nahin-Hindi.pdf/८१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
80/यह गली बिकाऊ नहीं
 


था? मुत्तुकुमरन् ने उसे अपने आलिंगन में बाँध लिया। माधवी भी माधवी लता की तरह उससे लिपट गयी । उसके कानों में अपने फूल-से होंठ से जाकर वह गद्गद् कंठ से बोली, "ऐसे ही रह जाने को जी चाहता है !"

"ऐसे ही रह जाने का जी करने से ही आदिम नर-नारी के बीच संसार का सृजन हुआ ।"

उसकी बांहें माला बनकर पीठ को लपेटती हुई मुत्तुकुमरन् के मजबूत कंधों पर आ रुकी और कसने लगी।

इसी समय थोड़ी दूर पर बंगले से आउट हाउस को आनेवाली वीथी पर किसी के जूतों की चरमर सुनायी दी।

"हाय, हाय ! लगता है कि गोपाल जी आ रहे हैं। छोडिए, छोड़िए !"

माधवी घबराकर अपने को छुड़ाने लगी। मुत्तुकुमरन् को यह नहीं भाया । उसकी आँखें लाल हो गयीं। माधवी को घूरकर देखते हुए उसपर अपना गुस्सा उतारा।

"कल रात को नाटक से लौटते हुए मैंने गोपाल से जो कुछ कहा था-

उसीको तुम्हारे सामने भी दुहराता हूँ कि कमजोर की रंगों में खून नहीं, भय का भूत दोड़ता है।"

गोपाल यह सुनते हुए अंदर आया और बोला, "कल रात से ही कविता की भाषा में कोस रहे हो, गुरु !"

माधवी ने झट से सँभलकर, होंठों पर स्वाभाविक हँसी लाकर गोपाल का स्वागत किया।

"माधवी ! तुम्हारी तस्वीरों को दो प्रतियाँ चाहिए; 'पासपोर्ट' के 'आवेदन' के लिए। सोच रहा हूँ, कल ही सारे आवेदन भेज दूं ! मुत्तुकुमरन् साहब को भी फोटो स्टूडियो में जाकर फोटो खिंचवाना चाहिए। दोपहर तक तुम्हीं ले जाकर 'फोटो का इंतजाम कर दो। दिन बहुत कम हैं !" गोपाल ने कहा ।

"कहाँ ? पांडि बाजार के सनलाइट स्टूडियो में ही ले जाऊँ न?"

"हाँ-हाँ ! वही ले जाओ । वहीं जल्दी तैयार कर देगा !"

माधवी और गोपाल के बीच की इन बातों में मुतुकुमरन् शामिल नहीं हुआ। थोड़ी देर बाद गोपाल वहाँ से चलने लगा तो द्वार तक जाकर मुड़ा और आँखें 'मारकर बोला, "माधवी ! एक मिनट ।" उसे इस तरह आँखें मारते देखकर मुत्तुकुमरन का दिल कचोटने लगा।

माधवी की दशा साँप-छछूंदर की-सी हो गयी। जाये या न जाये । इस असमंजस में पड़कर गोपाल और मुत्तुकुमरन् को बारी-बारी से देखने लगी। गोपाल ने ज़ोर से उसका नाम लिया और ड्योढ़ी फलौंग गया । माधवी को जाने के सिवा और कोई रास्ता नहीं दीखा। मुत्तुकुमरन् की आँखों में उत्तर आयी