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पृष्ठ:Yeh Gali Bikau Nahin-Hindi.pdf/८४

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यह गली बिकाऊ नहीं/83
 

रगों में खून नहीं, भय ही दौड़ता है•••"

"कला के हर क्षेत्र में आज व्यापार की बाज़ारी मिलावट आ गयी है । अब इसे सुधारा नहीं जा सकता । जैसे लोग अकालग्रस्त बेची न जानेवाली चीजें भी बेचकर पेट भरते हैं, वैसे ही आज के कलाकार किसी भी हालत में न खोई जानेवाली चीजें गँवाकर अपने वौने अस्तित्व को बचाने के लिए पैसे के पीछे मारे- 'मारे फिर रहे हैं। मैं मद्रास में ऐसे ही कलाकारों को देख रहा हूँ, जिनमें अपनी कला को लेकर गर्व अनुभव करने की तनिक भी मनोदृढ़ता बाक़ी नहीं रह गयी है। यह इस युग की महामारी ही है।"

"आपकी इन बातों को सुनने के लिए काश, मैं दस साल पहले आपसे मिली होती !" कहते-कहते माधवी का स्वर भर गया। मुत्तुकुमरन् उसके पश्चात्ताप से प्रभावित हुआ। उसके संताप से उसका दिल पिघल गया । बात करने को कोई 'सिरा नहीं मिला तो वह कुछ देर तक टकटकी लगाये उसे देखता रह गया।

माधवी ने उसका मौन तोड़कर पूछा, "कहिए, अब मैं क्या करूँ ?"

"मुझसे क्यों पूछती हो?"

"आपको छोड़कर और किससे पूछू ? उन्होंने जैसा कहा, मैं अब्दुल्ला से मिलने अभी नहीं जाऊँगी । अगर गयी भी तो शाम को जाऊँगी । और मैं अकेली नहीं, आप को भी साथ लेकर जाऊँगी."

"मुझे ? मुझे क्यों ?"

"मेरे साथ आप नहीं जायेंगे तो और कौन जाएगा .?" -यह वाक्य सुनकर मुत्तुकुमरन् का तन-मन पुलकित हो उठा।



बारह
 


मुत्तुकुमरन् ने महसूस किया कि नारी की सुकुमारता अपने प्रेम प्रदर्शन में विलक्षणता और चातुरी लाने से चमक उठती है। 'मेरे साथ भाप नहीं जायेंगे तो और कौन जाएगा..?' इस वाक्य ने उसपर जादू-सा कर दिया ! उसमें कैसी आत्मीयता टपकती थी? 'उसके साथ चलने और उसका साथ देने को उसे छोड़- कर दूसरा कोई व्यक्ति योग्य नहीं है' यह आशा उसमें कहाँ से बँधी ? यह भरोसा कहाँ से पैदा हुआ ? जहाँ यह सोचकर वह आत्म-विभोर हुआ वहाँ यह विचार करते हुए उसे यह हैरानी भी हुई कि मैं कौन हूँ कि उसपर, बेतरह अपना गुस्सा उतारूँ? उसका-मेरा परिचय कितने दिनों का है ?