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यह गली बिकाऊ नहीं/85
 


माधवी को धर्म-संकट से बचाने के विचार से मुत्तुकुमरन् स्वयं आगे बढ़कर बोला, "बात यह है कि मैं भी ओशियनिक देखना चाहता था। इसलिए मैं स्वयं इसके साथ चल पड़ा।"

गोपाल की समझ में नहीं आया कि इस हालत में मुत्तुकुमरन् को गाड़ी से कैसे उतारे। वह झींककर बोला, "अच्छा, तो दोनों ही हो आओ। लेकिन गाड़ी में लौटते उनसे बातों में न उलझना। उनके ज़रिये ही हमारा काम होना है । उनका दिल दुखाने का कोई बहाना नहीं ढूंढ़ लेना।"

वह माधवी को आगाह कर धड़ाधड़ अन्दर चला गया। माधवी को उसकी चाल से ही उसके क्रोध का पता चल गया। पर मुत्तुकुमरन के सामने उसने इसे प्रकट नहीं किया।

मुत्तुकुमरन् गुस्से की हँसी हँसते हुए बोला, "इसका जी तो मेरा हाथ खींचकर कार से उतारने को हो रहा था, पर वह हो नहीं पाया।"

संयोग से उस समय माधवी कार चला रही थी। तीसरे व्यक्ति के न होने से वे दोनों खुलकर बातें कर पा रहे थे।

पिनांग के अब्दुल्ला के कमरे में जब वे गये, तब उनके साथ चार-पांच मुलाकाती और थे। अब्दुल्ला ने दोनों का स्वागत कर कमरे में ही विठा लिया।

"गोपाल साहब ने रात. की 'डिनर' के लिए ही तो बुलाया है। साढ़े आठ बजे के करीब आना काफ़ी नहीं होगा क्या ? अभी साढ़े छः ही बज रहे हैं !" अब्दुल्ला ने घड़ी देखकर कहा।

"गोपालजी के विचार से आप अभी आ जाते तो थोड़ी देर बातचीत भी हो जाती। बाद में डिनर तो है ही। बातों में समय कटते कितनी देर लगती है ? पल भर में आठ बज' जायेंगे !" माधवी ने उत्तर दिया।

"सचमुच आपका कल का अभिनय बहुत अच्छा था । मलेशिया में आपका बड़ा नाम होगा।" अब्दुल्ला ने माधवी के मुख के सामने माधवी की ऐसी तारीफ़ की कि वह शरमा गयी।

आये हुए मुलाकाती एक-एककर विदा हुए।

मुत्तुकुमरन् को पास बिठाकर अब्दुल्ला को इस तरह तारीफ़ करते देखकर माधवी सिकुड़-सी गयी और बोली, "सारा-का-सारा श्रेय तो इनका है। इन्होंने नाटक इतना अच्छा लिखा है कि हम आसानी से अभिनय कर नाम पा गये।"

"पर यह भी हो सकता है न कि अभिनेताओं की किरदारी से लिखनेवाले का नाम भी रोशन हो जाये !"-अब्दुल्ला ने फिर वही चक्की पीसी ।

मुत्तुकुमरन्' इस विवाद में पड़ना नहीं चाहता था। क्योंकि उसके विचार से कला का महत्त्व न जाननेवाले व्यापारी ऐसे दूंठ थे, जिनपर हज़ार कोशिश करने पर भी कील न चढ़ती। वह अपने विचारों को 'भैंस के आगे बीन होते नहीं देना