मुत्तुकुमरन् को माधवी पर क्रोध आया। यदि माधवी अपनी जुबान पर काबू
रखती और अब्दुल्ला से सेंट की बात नहीं पूछती तो क्या वे भिखमंगों को भीख देने
की तरह उसके हाथों में 'सेंट' की शीशी उठाकर थमाते ? भड़कते क्रोध में भी
उसका विचार औरतों की इस आम कमजोरी पर गया कि सारी दुनिया में विरला
ही ऐसी कोई औरत होगी, जो सुगंधित वस्तुओं, पुष्पों और साड़ियों के मामले में
उद्विग्न और चंचल न हो उठती हो ! पर अपनी इच्छित वस्तुओं को माँगने की
एक मर्यादा होती है। जैसे एक कुलीन स्त्री का सुगंध, पुष्प, साड़ी आदि के विषय
में अन्य पुरुषों से पूछना वेहूदा है, वैसे ही माधवी का अब्दुल्ला से इस बारे में पूछना
भी उसे अशिष्ट लगा।
यह सब सिने जगत में जाने का नतीजा है। यह सोचकर उसने उसे दिल-ही- दिल में माफ़ भी कर दिया।
कार में मांबलम जाते हुए अब्दुल्ला मलेशिया की यात्रा के विषय में एक-पर- एक सवाल करते जा रहे थे।
"तुम्हारी मंडली के साथ कुल कितने लोग आयेंगे? कौन-कौन ह्वाई जहाज से आयेंगे ? कौन-कौन समुद्री जहाज से आयेंगे ?"
माधवी जो कुछ जानती थी, बताये जा रही थी। कार की अगली सीट पर मुत्तुकुमरन् माधवी के साथ बैठा था और अब्दुल्ला. पिछली सीट पर अकेले बैठे थे।
बँगले के द्वार पर पोटिको में गोपाल ने अब्दुल्ला का स्वागत किया और स्वागत करते हुए हाथी की सूंड जैसी भारी गुलाब के फूलों की माला अब्दुल्ला को पहनायी । फिर दावत में आये हुए अभिनेता-अभिनेत्रियों, प्रोड्यूसरों और सिनेमा- जगत् के दूसरे व्यक्तियों से अब्दुल्ला का परिचय कराया। दावत के पहले सब बैठकर हँसी-खुशी बातें करते रहे। . गोपाल के दावत का इन्तजाम और उसका ठाठ-बाट देखकर अब्दुल्ला दंग रह गये और एक तरह से मोहित भी हो गये। न जाने क्यों, गोपाल उस दिन मुत्तुकुमरन और माधवी से कुछ खिचा-सा रहा ।
दावत के समय अब्दुल्ला अभिनेत्रियों और एक्स्ट्राओं के झुंड के मध्य बैठाये
गये। लगा कि कोई अमीर शेख अपने हरम में बैठा हो । अभिनेत्रियों की खिल- खिलाती हँसी के बीच अब्दुल्ला के ठहाके पटाखे की तरह छूट रहे थे। दावत के बाद यह प्रश्न उठा कि लौटते हुए अब्दुल्ला को ओशियानिक पर पहुँचाने कौन जाये ? माधवी हिचकते हुए गोपाल के सामने जाकर खड़ी हुई कि शायद उसी को पहुँचाना पड़ेगा।
"न, तुम्हें नहीं जाना है । जाकर अपना काम देखो ! तुम्हें तमीज़ नहीं ! सारी दुनिया को साथ लेकर चलोगी !" गोपाल ने जरा कड़े शब्दों में कहा "तो माधवी