छोड़ आने को कहा है !"
माधवी ने गोपाल पर का गुस्सा ड्राइवर पर उतारा, "कोई जरूरत नहीं। तुम अपना काम देखो। मुझे अपने घर का रास्ता मालूम है !"
"अच्छा! मालिक को यही कह दूंगा !"कहकर ड्राइवर चला गया। आउट हाउस में जाते-जाते माधवी को रुलाई आ गयी। मुत्तुकुमरन् को देखते ही वह फूटकर रो पड़ी। रोते-रोते वह मुत्तुकुमरन के सीने से मुरझायी माला की भौति लग गयी !
"क्या है ? क्या हुआ ? किसने क्या कहा ? इस तरह क्यों रो रही हो?"
मुत्तुकुमरन् ने घबराकर पूछा । कुछ देर तक वह कुछ बोल नहीं पायी। बोल फूटने के बदले सिसकी ही फूटी । मुत्तुकुमरन् ने बड़े प्यार से उसकी पीठ पर थपथपाकर सांत्वना दी तो वह अपने को सँभालकर बोली, "मुझे घर जाना है । बस का टाइम हो गया है । टैक्सी के लिए मेरे पास पैसे नहीं हैं । आप मेरा साथ दें तो मैं पैदल ही घर चलूंगी। मेरा और कोई साथी नहीं है । मैं अकेली हूँ 'अबला •••हूँ।"
"क्या हुआ? क्यों ऐसी बातें करती हो ? साफ़-साफ़ बतानो !
"वह कहते हैं कि मैं त्रिया-चरित्र खेल रही हूँ । अब्दुल्ला को बुला लाने के ‘लिए मैं अकेली क्यों नहीं गयी? आपके आने पर मेरा बर्ताव ही बदल गया है !"
"कौन कहता है ? गोपाल ?"
"उनके सिवा और कौन...?"
मुत्तुकुमरन् की आँखें क्रोध से लाल हो उठीं । कुछ पल वह कुछ बोल नहीं 'पाया । थोड़ी देर बाद उसका मुंह खुला, "अच्छा, चलो ! मैं तुम्हें घर छोड़कर आता हूँ !"
मुत्तुकुमरन् उसे साथ लेकर चल पड़ा । उन दोनों के बँगले की चारदीवारी के अन्दर ही गोपाल नेआकर उनका रास्ता रोका !
"तुमने गुस्से में आकर जो कहा, ड्राइवर ने आकर बता दिया है। मैंने कुछ गलत तो नहीं कहा । हमारा परिचय आज या कल का नहीं है। कितनी ही ऐसी बातें मैंने कही हैं । अब कुछ दिनों से गुस्सा तुम्हारी नाक पर चढ़ा रहता है। अजनवी समझकर मुझपर सारा गुस्सा निकालने लगो तो मेरे लिए कहने को कुछ नहीं है।"
माधवी उसकी बातों का कोई जवाब दिए बिना सिर झुकाए खड़ी रही ।
मुत्तुकुमरन् भी कुछ बोला नहीं। गोपाल ने ताली बजाकर किसी को बुलाया। 'ड्राइवर ने कार लाकर माधवी के नजदीक खड़ी की।
मुत्तुकुमरन् चुपचाप यह देखता खड़ा रहा कि माधवी अब क्या करती है ।
"बैठो ! घर पर उतरकर कार वापस भिजवा देना । मेरा दिल न दुखाओ !" गोपाल मानों गिड़गिड़ाया।