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96/यह गली बिकाऊ नहीं
 

थोड़ी देर में दोनों सहज-स्वाभाविक हो गये थे। अपने मन की आशंका दूर करने के लिए उसने पूछा, “मलेशिया जाने के लिए पासपोर्ट के कागजात पर हस्ताक्षर कर दिये कि नहीं ?"

"मैं साथ न जाऊँ तो आप लोगों को सुविधा होगी कि नहीं ?"

"यों क्यों दिल छेदते हैं ? आपके साथ जाने पर ही मेरे लिए सहूलियत होगी!"

मुत्तुकुमरन के कानों में मानो शहद की फुहार-सी पड़ी। उसने माधवी के गदराये कंधों को ऐसा दबाया कि वह मधुर-पीड़ा के सुख में चिहुँक उठी और अपनी फूल- माला-सी बांहों से उसे जकड़ लिया। दोनों की साँस जुगलबंदी करके चलने लगी। माधबी उसके कानों में फुसफुसायी-"उस पत्रिका में हमारी तस्वीर छपी थी, आपने देखी?"

"हाँ, देखी ! उसमें क्या रखा है ?"

"तो इसमें क्या रखा है ?"

"इसी में तो सब कुछ रखा है !" उसकी बाँहें और कसने लगीं।

"चलो, बगीचे में चलकर घास पर बैठकर बातें करेंगे !" माधवी ने हौले-से कहा । मुत्तुकुमरन् को लगा कि माधवी डर रही है कि एकाएक कोई यहाँ आ जाए तो क्या हो? लेकिन उसकी बात मानकर उसके साथ वह बगीचे में गया ।

बे जब बगीचे में बैठकर बातें कर रहे थे, तब गोपाल लौट गया था। 'आउट हाउस' में जाकर खोजने के बाद वह वहीं आ गया, जहां वे दोनों बैठे थे। उसके हाथ में भी वही पत्रिका थी।

"देखा उस्ताद ! तुम्हारे बारे में जिल जिल ने कितना बढ़िया लिखा है !"

"वढ़िया क्या लिख दिया? मैंने जो कहा है, सो लिखा है ! अगर कुछ बढ़िया हो तो वह मेरी बात है !"

"अच्छा, तो यह कहो कि तुमने जो कुछ कहा है, वही लिखा है !"

गोपाल की बातों में चुभता व्यंग्य था। उसकी बातों में अभिधा, लक्षणा और 'व्यंजना-तीनों इस तरह घुली-मिली थी कि उन्हें समझने में थोड़ी देर लग गयी। मुत्तुकुमरन माधवी से शादी करना चाहता है इस बात का पुष्टीकरण मुत्तुकुमरन् के मुह से गोपाल चाहता था।

थोड़ी देर तक तीनों खामोश रहे।

"इस साक्षात्कार में छपा चिन भी नया-नया खिंचवाया मालूम होता है !" गोपाल ने उन दोनों को चित्र दिखाकर पूछा।