पृष्ठ:Yuddh aur Ahimsa.pdf/१००

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
९१
नाज़ीवाद का नग्न रूप

 नाज़ी क्रूरता और निष्ठुरता की इतनी चिन्ता नहीं। मुझे चिन्ता में डालनेवाली तो इस मित्र की यह मान्यता लगती है कि हिटलर या उनकी जर्मन प्रजा इतनी यंत्रवत् और जड़वत् बन चुकी है कि अब अहिंसा का प्रयोग असर डाल ही नहीं सकता। मगर अहिंसा अगर काफ़ी दर्जतक चलाई जाये, तो जरूर उसका असर हेरहिटलर पर और उनके धोखे के जाल में फँसी हुई प्रजा पर तो और भी निश्चित रूप पड़नेवाला है। कोई आदमी हमेशा के लिए यंत्रवत् नहीं बनाया जा सकता। जहाँ उसके सिर पर से सत्ता का भारी वोभ उठा कि वह अपनी सच्ची प्रकृति के अनुसार फिर चलने लगता है। अपने परिमित अनुभव पर से जो सिद्धान्त इस मित्र ने गढ़ लिया है वह बताता है कि अहिंसा की गति को उसने समझा ही नहीं। बेशक, ब्रिटिश सरकार ऐसे प्रयोगों में नहीं पड़ सकती कि जिनमें उसे कामचलाऊ भी श्रद्धा नहीं, और इस तरह अपने-आपको वह जोखिम में नहीं डाल सकती। लेकिन अगर मुझे मौका दिया जाये, तो मेरी शारीरिक शक्ति दुर्दल होते हुए भी असम्भव-जैसी दिखाई देनेवाली बात के लिए भी मैं बेधड़क प्रयास कर सकता हूँ; क्योंकि अहिंसा का साधक अपने बल पर मैदान में नहीं उतरता, वह तो ईश्वरीय बल पर आधार रखता है। इसलिए अगर मेरे लिए रास्ता खोल दिया जाये, तो मुझे यकीन है कि ईश्वर मुझे शारीरिक बल भी दे देगा और मेरी वाणी में वह अमोघ प्रभाव भी पैदा कर देगा। कुछ भी हो, मेरी तो सारी जिन्दगी