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चेकोस्लोवाकिया और अहिंसा का मार्ग


अपनी पाशविकता पर रोक लगानी पड़ेगी। इस वक्त हमें मानवरूप तो प्राप्त है, लेकिन अहिंसा के गुणों के अभाव में अभी भी हमारे अन्दर प्राचीनतम पूर्वज-'डार्विन' के बन्दर के संस्कार विद्यमान हैं।

यह सब मैं यों ही नहीं लिख रहा हूँ। चेकों को यह जानना चाहिए कि जब उनके भाग्य का फैसला हो रहा था तब कार्यसमिति को बड़ा कष्ट हो रहा था। एक तरह तो यह कष्ट बिलकुल खुदगर्जी का था। लेकिन इसी कारण वह अधिक वास्तविक था। क्योंकि संख्या की दृष्टि से तो हमारा राष्ट्र एक बड़ा राष्ट्र है, लेकिन संगठित वैज्ञानिक हिंसा में वह चेकोस्लोवाकिया से भी छोटा है। हमारी आजादी न केवल खतरे में है, बल्कि हम उसे फिर से पाने के लिए लड़ रहे हैं। चेक लोग शस्त्रास्त्रों से पूरी तरह सुसज्जित हैं, जबकि हम लोग बिलकुल निहत्थे हैं। इसलिए समिति ने इस बात का विचार किया कि चेकों के प्रति हमारा क्या कर्तव्य है, और अगर युद्ध हो तो कांग्रेस को क्या करना चाहिए। क्या हम चेकोस्लोवाकिया के प्रति मित्रता जाहिर करके अपनी आजादी के लिए इंग्लैण्ड से सौदा करें, या वक्त पड़ने पर अहिंसा के ध्येय पर कायम रहते हुए पीड़ित जनता से यह कहें कि हम युद्ध में शामिल नहीं हो सकते, फिर वह प्रत्यक्ष रूप में चाहे उस चेकोस्लोवाकिया की रक्षा के लिए ही क्यों न हो जिसका एकमात्र कसूर यह है कि वह बहुत छोटा होने के कारण अपने आप अपनी रक्षा नहीं कर सकता। सोच-विचार के बाद कार्य-समिति