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युद्ध और अहिंसा


करीब-करीब इस निर्णय पर आई कि वह इंग्लैण्ड से सौदा करने के इस अनुकूल अवसर को तो छोड़ देगी, लेकिन संसार की शान्ति, चेकोस्लोवाकिया की रक्षा और हिन्दुस्तान की आजादी की दिशा में संसार के सामने यह घोषित करके वह अपनी देन जरूर देगी कि सम्मानपूर्ण शान्ति का रास्ता निर्दोषों की पारस्परिक हत्या नहीं, बल्कि इसका एकमात्र सञ्चा उपाय प्राणों तक की बाजी लगाकर सगठित अहिंसा को अमल में लाना है।

अपने ध्येय के प्रति वफ़ादार रहते हुए कार्य-समिति यही तर्कसम्मत और स्वाभाविक रास्ता अख्त्यार कर सकती थी, क्योंकि अगर हिन्दुस्तान अहिंसा से आजादी हासिल कर सकता है, जैसा कि कांग्रेसजनों का विश्वास है, तो उसी उपाय से वह अपनी स्वतंत्रता की रक्षा भी कर सकता है और इसलिए और इस उदाहरण पर चेकोस्लोवाकिया-जैसे छोटे राष्ट्र भी ऐसा ही कर सकते हैं।

युद्ध छिड़ जाता तो कार्य-समिति असल में क्या करती, यह मैं नहीं जानता। लेकिन युद्ध तो अभी सिर्फ टला है। साँस लेने के लिए यह वक़्त मिला है, इसमें मैं चेकों के सामने अहिंसा का रास्ता पेश करता हूँ। वे यह नहीं जानते कि उनकी किस्मत में क्या-क्या बदा है? लेकिन अहिंसा-मार्ग पर चल करके वे कुछ खो नहीं सकते। प्रजातन्त्रीय स्पेन का भाग्य आज झूले में लटक रहा है। और यही हाल चीन का भी है। अन्त में अगर ये सब हार जायें तो इसलिए नहीं हारेंगे कि इनका पक्ष न्यायोचित