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चेकोस्लोवाकिया और अहिंसा का मार्ग


नहीं है, बल्कि इसलिए कि विनाश या जन-संहार के विज्ञान में वे अपने विपक्सि की बनिस्बत कम कुशल हैं या इसलिए कि उनका सैन्यबल अपने विनाशियों की अपेक्ष्का कम है। प्रजातन्त्री स्पेन के पास अगर जनरल प्रोम्को के साधन हों या चीन के पास जापान की-सी युद्ध-कला हो, अथवा चेकों के पास हर हिटलर की जैसी कुशलता हो तो उन्हें क्या लाभ होगा? मैं तो कहता हूँ कि अपने विरोधियों से लड़ते हुए मरना अगर बहादुरी है और वह वस्तुतः है, तो अपने विरोधियों से लड़ने से इन्कार कास्द् भी उनके आगे न भुकना और भी बहादुरी है। जब दोनों ही सूरतों में मृत्यु निश्चित है, तब दुश्मन के प्रति अपने मन में कोई भी देश-भाव रखे बिना छाती खोल्कर मरना क्या अधिक श्रेष्ठ नहीं है?

  • हरिजन-सेवक': ८ अक्तूबर्, १६३८