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अगर मैं 'चेक' होता!


खर्च कर डालते हैं। उनके शब्द या काम में कोई धोखा नहीं है। युद्ध के लिए वे सदा तैयार रहते हैं। जर्मनी या इटली में उनके आड़े आनेवाला कोई नहीं है। वहाँ तो उनका शब्द ही कानून है।

श्री चैम्बरलेन या श्री दलादियर की स्थिति इससे भिन्न है। उन्हें अपनी पार्लमेण्टों और चैम्बरों को सन्तुष्ट करना पड़ता है। अपनी पार्टियों से भी उन्हें सलाह करनी पड़ती है। अगर अपनी जुबान को उन्हें लोकतन्त्री भावनायुक्त रखना है, तो वे हमेशा युद्ध के लिए तैयार नहीं रह सकते।

युद्ध का विज्ञान शुद्ध और स्पष्ट अधिनायकत्व (डिक्टेटरशिप) पर ले जाता है। एकमात्र अहिंसा का विज्ञान ही शुद्ध प्रजातंत्र की ओर ले जानेवाला है। इंग्लैण्ड, फांस और अमेरिका को यह सोच लेना है कि वे इनमें से किसको चुनेंगे ? यही इन दो अधिनायकों (डिक्टेटर) की चुनौती है।

रूस का अभी इन बातों से कोई मतलब नहीं है। रूस में तो एक ऐसा अधिनायक है जो शान्ति के स्वप्न देखता है और यह समझता है कि खून की नदियां बहाकर वह उसे स्थापित करेगा । रूसी अधिनायकत्व दुनिया के लिए कैसा होगा, यह अभी कोई नहीं कह सकता।

चेकों और उनके द्वारा उन सब देशों को, जो 'छोटे' या 'कमज़ोर' कहलाते हैं, मैं जो कुछ कहना चाहता हूँ उसकी भूमिका-स्वरूप यह सब कहना जरूरी था। चेकों से मैं कुछ