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अगर मैं 'चेक' होता!


है, यही मेरा मौका है। इस नदामत के कलंक को धोकर मुझे अब सची स्वतंत्रता प्राप्त करनी होगी।

लेकिन एक हमदर्द कहता है, "हिटलर दया-मया कुछ नहीं जानता। आपका आध्यात्मिक प्रयत्न उसे किसी बात से नहीं रोकेगा।"

मेरा जवाब यह है कि "आपका कहना ठीक होगा। इतिहास में ऐसे किसी राष्ट्र का उल्लेख नहीं है, जिसने अहिंसात्मक प्रतिरोध को अपनाया हो। इसलिए हिटलर पर अगर मेरे कष्टसहन का असर न पड़े तो कोई बात नहीं, क्योंकि उससे मेरा कोई खास नुकसान न होगा। मेरे लिए तो मेरी मान-मर्यादा ही सब कुछ है और उसका हिटलर की दया भावना से कोई ताल्लुक नहीं। लेकिन अहिंसा में विश्वास रखने के कारण, मैं उसकी सम्भावनाओं को मर्यादित नहीं कर सकता। अभीतक उनका और उन जैसे दूसरों का यही अनुभव है कि मनुष्य पशुबल के आगे झुक जाते हैं। निःशस्त्र पुरुषों, स्त्रियों और बच्चों का अपने अन्दर कोई कटुता रक्खे बिना अहिंसात्मक प्रतिरोध करना उनके लिए एक अद्भुत अनुभव होगा। यह तो कौन कह सकता है कि ऊँची और श्रेष्ठ शक्तियों का आदर करना उनके स्वभाव के ही विपरीत है। उनके भी तो वही आत्मा है जो मेरे है।"

लेकिन दूसरा हमदर्द कहता है, "आप जो कुछ कहते हैं वह आपके लिए तो बिलकुल ठीक है। पर जनता से आप इस श्रेष्ठ