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युद्ध और अहिंसा


का आदर करने की आशा कैसे करते हैं, वे तो लड़ने के आदि हैं। व्यक्तिगत वीरता में वे दुनिया में किसी से कम नहीं हैं। उन्हें अब अपने हथियार छोड़कर अहिंसात्मक प्रतिरोध की शिक्षा पाने के लिए कहने का श्रापका प्रयत्न मुझे तो व्यर्थ ही मालूम पड़ता है।"

"आपका कहना ठीक होगा। लेकिन मुझे अन्तरात्मा का जो आदेश मिला है उसका पालन करना ही चाहिए। अपने लोगों याने जनता तक मुझे अपना सन्देश जरूर पहुँचाना चाहिए। यह अपमान मेरे अन्दर इतना अधिक समा गया है कि इससे बाहर निकलने के लिए कोई रास्ता चाहिए हो। कम-से-कम मुझे तो उसो तरह प्रयत्न करना चाहिए जैसा कि प्रकाश मुझे मिला है।"

यही वह तरीका है जिसपर कि, मेरा खयाल है, अगर मैं चेक होता तो मुझे चलना चाहिए था। सब से पहले जब मैंने सत्याग्रह शुरू किया, तब मेरा कोई संगी-साथी नहीं था। सारे राष्ट्र के मुकाबले में हम सिर्फ तेरह हजार पुरुष, स्त्री और बच्चे थे, जिन्हें बिलकुल मटियामेट कर देने को भो उस राष्ट्र में क्षमता थी। मैं यह नहीं जानता था कि मेरी वान कौन सुनेगा। यह सब बिलकुल अचानक-सा हुआ। कुल १३,००० लड़े भी नहीं। बहुत-से पिछड़ गये। लेकिन राष्ट्र को लाज रह गई, और दक्षिण अफ्रीका के सत्याग्रह से एक नये इतिहास का निर्माण हुआ।

खान अब्दुलगफ्फार खाँ शायद इसके और भी उपयुक्त